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________________ + का अचोक्खा विसंगतियं पगीता-पत्तल य छलिता, परिहरिय प्रतिक्रमणा * __ न पमादो अप्पमादो, तत्थ उदाहरणं-रायगिहे जरासंधो राया,तस्स सम्बप्पहाणाओ दो गणिकाओ-मगहसुंदरी मगहसिरीअप्रमादो ध्ययने य, मगहसिरी चिंतेति-जदि एसा न होज्जा मए एक्कलियाए राया हत्थगतो होज्जा जसो यत्ति, तीसे छिद्दाणि मग्गति, ताहेमियोमा ॥२०९॥ |मगहसुंदरीए नदिवसंमि कण्णिकारेसु सोवण्णिकाओ विसधूविताओ सूचीओ केसरसरिकाओ पक्खित्ताओ, ताहे तीए मगहसु-1 संग्रह। दरीए महतरिका पेच्छति-भमरा कणिकाराणि न अल्लियंति, चूतेसु णिणेन्ति, ताहे ऊहितं-Yणं सदोसाणि पुप्फाणित्ति, जदिय मण्णिहिन्ति-एतेहिं पुष्फेहिं अच्चणिका अचोक्खा विसभाविताणि वा तो गामेल्लकत्तणं होहितित्ति, तो उवाएण वारेमि, सायरवं उत्तिण्णा, अण्णदा मंगलं गाइज्जति, तं दिवसं इमं गीतियं पगीता-पत्तए वसंतमासए॥ सा चिंतेति- अपुव्वगीतिका, णातं सदोसाणि कणिकाराणि, ते परिहरंतीए गीतं नच्चितं च सविलासं, ण य छलिता, परिहरिय अप्पमत्ता नहूँ गीतं किर न चुक्का । एवं साधुणावि पंचविहे अप्पमादे रक्खेंतेण जोगा संगहिता भवंति २६ ॥ सो य अप्पमादो लवे अद्धलवे वा पमादं ण जाइतव्वं । भरुअच्छे एको आयरिओ, तेण विजयो सीसो उज्जेणिं पत्थविनोद कज्जेणं, सो जाति, तस्स गिलाणकज्जेण केणइ वक्खेवो, सो य अंतरा वासावासेण रुद्धो, अणुगतणं उद्वितंति गडपिडए गामे वासावासं ठितो नागघरे, सो चिंतेति-गुरुकुलवासो न जातो, इहवि करेमि, तहेव जो उबदेसो तेण ठवणायरितु ठावितो, सो कालं गहाय आवस्सए काउस्सग्गं कात्रणं वंदित्ता आलोएति, मज्झवि वंदित्ता पच्चक्खाणं सयमेव गेण्हति, पच्छा कालं निवेदेति ॥२०९॥ सयं चव भणति-तहचि, एवं चक्कवालसमायारी विभासितव्या,एवं किर सो सम्वत्थ ण चुक्को, खणे खणे उक्खनिज्जतिलक में कतं किं च मे किच्च सेसमिति । एवं किर अप्पमादेणं जोगा संगहिता भवति २७ ॥ SARE
SR No.600291
Book TitleAavashyak Sutram Uttar Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1929
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size7 MB
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