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________________ प्रतिक्रमणा & रुट्ठो,ताहे अणुलोमिज्जति, आयरिया भणंति- केणेतं कतं ?, अमुगणंति, कीस मम अणापुच्छाए करेसि?, अलाहि एतेण मम, नीतु, सचित्तध्य यने एवं समक्खं तु भणंति, भाणते जदि सागारिओ भणिति- मा छुम्भह, अच्छतु, मा णवरं वितियं करेज्जा, अह भणति-मा अच्छतु, मनुष्यपरि पच्छा अण्णाए वसहीए ठाति, बितिज्जओ से दिज्जति, मातिट्ठाणेण कोइ साधू भणति- मम स णीयल्लगो यदि निच्छुब्मति ॥१०९॥ है अहंपि जामि, अहवा सागारिएण समं कोइ कलहेति, ताहे सोवि निच्छुब्भति, सो से बितिज्जगो होति, जदि बहिया से पच्च-18 वाओ'वसही वा नत्थि ताहे सव्वेवि णिति,वितियपदं तत्थेव परिडवेज्जा उद्वितो सो संनिवेसो असिवगहितओ वा। संजतपरिलहावणिया गता ।। इदाणिं असंजतमणुयाणं, सा दुविधा भवति- सचित्तेहिं अचित्तेहि य, सचित्तेहिं ताव कहं पुण तीए संभवोत्ति कप्पटुग ॥ १५-१३५।१३४॥४॥ काइ य अविरइया संजताणं वसहीत कप्पट्ठगरूवं साहरेज्जा अणुकंपाए भएणं पडणी-13 यत्ताए वा, अणुकंपाए चिंतेति-एते भट्टारगा सत्तहितायोत्थिता, एत्थ साहरामित्ति साहरेज्जा, दुक्काले वा पत्ते भत्तं वा पाणं वा से दाहिंतित्ति छड्डेज्जा, दासी वा चिंतेति- एतस्सतएण न कोति दुक्किहितित्ति एतेसिं अणुकंपिताणं वसहीए साहरेज्जा भएणं रंडा पतुत्यवतिया पा साहरेज्जा, एतेसिं अणुकंपिहितित्ति परिठवेज्जा २ पडिणीया तच्चण्णिगिणी चरिगा वा एतेसि उड्डाहो होउत्ति साहरेज्जा३, एत्थं का विधी ?, दिवे दिवे य वसही वसभेहिं परितंचितव्वा, पच्चूसे पदोसे मज्झण्हे अद्धरत्ते य, ॥१०९॥ एषमादी दोसा होहिंतित्ति, जदि विगिचंवी दिट्ठा बोलो कीरति, एसा इत्थया दारगरूवं छड्डेतूर्ण पलायति, ताहे लोगो एति, पेच्छति तं, ताहे जं जाणति तं कीरति, न दिट्ठा होज्जा ताहे विगिचिज्जति उदगपहे, जणो वा जत्थ पादे निग्गसो अच्छति।
SR No.600291
Book TitleAavashyak Sutram Uttar Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1929
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size7 MB
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