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________________ सामायिकाणंसि अगारंसि, मणुण्णं झायते मुणी ॥१।। एवं णेगमो इच्छति, संगहादीया सेसा सव्वदब्वेसु, नो सब्वपज्जवेस. जेण दव्याण सव्वपज्जवसु, जण दब्बाणाकताकृता| केइ पज्जवा सुमा केसि असुभा, सामाइयं च सुभपज्जवेसु कीरति, णो असुभपज्जवसु, दब्वाणि पुण परिणामवसेणं सुभा असभावि दिनिरूपण | भवंति, सव्वदवाणिवि असुभपरिणामिहोतूण सुभपरिणामानि भवंति, दुगंधावि पुग्गला सुगंधत्ता परिणमंतीत्यादिवचनात् । दारं ॥६०२॥ काहे व कारओ भवति ?, एत्थ णयमग्गणा णेगमस्स उद्दिढे सामाइए पढउ वा मा वा पढतु करेतु मा वा करेतु कारओ चेव, संगहववहाराणं बंदणगं दातूणं निविट्ठो गुरुपादमूले पढतु वा मा वा पढतु करेतु वा मा वा करेउ , कारतु चेव, उज्जुसुतस्स अपुव्वे सामाइयपज्जवे समए समए अक्कममाणस्स उवउत्तस्स वा सामाइयं भवति, अण्णे भणंति-तदा णो सामाइयं भवति, सम्मत्ते सामाइयं, तिण्हं सद्दणयाणं अपुब्वे सामाइयं, पज्जवे समए समए अकममाणस्स नियमा संमद्दिहिस्स उवउत्तस्स नो | सामाइयं, संमत्ते कारओ सामाइयस्स । एते चेव नया, अहवा इमं अट्ठविहं नेयाइयं लक्खणं , तंजथाआलोयणा य विणए खेत्त दिसाभिग्गहे य काले य। रिक्खगुणसंपदावि य अभिवाहारे ये अट्ठमए॥ १०॥४३॥ न्यायेन चरतीति नैयायिकः,एवंगुणसंपन्नाय एभिः प्रकारैः,एवं आलोइयपडिक्कंतस्स जो सामाइयं देति सो नायकारी नायवादी | भवति, सा आलोयणा दुविहा- गिहत्थालोयणा संजतालोयणा य, गिहत्थे का आलोयणा', परिखिज्जति अरिहो सामाइय- ॥६०२॥ स्स अणरिहोत्ति, तत्थ गाथा- अट्ठारस पुरिसेसुं वीस इत्थीसु दस नपुंसेसु । पव्वावणाइ अणरिहा०, कातुं अरिहातुवा ?, विवरीतं, संजतस्स का ?, उपसंपदा, सामाइयस्स अत्थनिमित्तं उवसंपज्जति सो आलोयाविज्जति , अहवा अणागतकालमत्थं सूएति,
SR No.600290
Book TitleAavashyak Sutram Purv Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1928
Total Pages620
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size13 MB
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