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________________ चूणी श्री विवरीतोसि थेरा, सो भणति- मते अण्णो दिट्ठो, ताहे विवादे सा भणति-अहं अप्पाणं सोहेमि, एवं करेहि, ताहे पहाता जक्खघरं अनुकंपायां आवश्यकाका गता, जो कारी सो लग्गति अंतरंडेण वोलेंतओ, अकारी मुच्चति, सा पहाविता, ताहे सो पिसायरूवं काऊणं साडएणं गेहति, मेंठ: ताहे सो तत्थ जक्खं भणति- जो मम मातापीतीहि दिण्णेल्लओ तं च पिसायं मोत्तूण जदि अण्णं जाणामि तो मे तुमं जाणसित्ति, उपोद्घात जक्खो विलक्खो चिंतेति-पेच्छह जारिसाणि मंतेति, अहयंपि वंचितो णाए, नत्थि सतित्तणं खु धुत्तीए, जाव चिंतेति ताव सा नियुक्ती सरिडित्ति निष्फिडिता, ताहे थेरो सब्वेणं लोगेण हीलितो, तस्स ताए अद्धितीए निद्दा नट्ठा, ताहे रणो कणं गतं, ताहे रण्णा ॥४६३॥ अंतेपुरपालओ कतो, आभिसक्कं च हस्थिरयणं वासघरस्स हेट्ठा वइ अच्छति, देवी हत्थिमेंठेण आसत्तिया, नवरि रति हस्थिणा हत्थो गवक्खेण पसारिओ, सा उतारिता, पुणरवि पभाते पडिविलइया, एवं वच्चति, अण्णता चिरं जातंति हत्थिमेंठेण हस्थिसंकलाए आहता, सा भणति-सो एरिसओ तारिसओ थेरो न सुयति, मा रूसह, तं थेरो पेच्छति, सो चितेति-जदि एताओवि किन्नु ताओ अतिभद्दिकाओत्ति, एवं चिंततो सुत्तो, पभाते लोगो सव्वो उद्वितो, सो न उद्वेति, रणो सिट्ठ, राया भणति-सुवतु, सत्तमे दिवसे उहितो, रण्णा पुच्छितो, कहितं, जहा एगा देवी ण जाणामि कतरावि, एवं संववहरति, ताहे रण्णा भिंडमतो हत्थी कारितो, सव्वाओ अंतेपुरियाओ भणिताओ- एतस्स अच्चणिय करेत्ता ओलंडेह, सव्वाहिं ओलंडीओ, सा णेच्छति, भणति-अहं बीहे| मि, किं च-शकटं पञ्चहस्तेन, दशहस्तेन शूगिणम् । हस्तिनं शतहस्तेन, देशत्यागेन दुर्जनम् ॥१॥ ताहे रण्णा उप्पलनालन | आहता, मुच्छिता किल पडिता, ताहे से उवगतं जहा एसा कारित्ति, भणिता य-मत्तगयमारुभतिया, भंडमयस्स गयस्स भायसी । ४ ॥४६३॥ | इह मुच्छिय उप्पलाहता, तत्थ न मुच्छति संकलाहता ॥१॥ पुट्ठी से जोइया, जाव संकलप्पहारो दिट्ठो, ताहे रण्णा हत्थी मेंठो Ix RASHRS4%ASHASASSSS 555555
SR No.600290
Book TitleAavashyak Sutram Purv Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1928
Total Pages620
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size13 MB
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