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________________ श्री आवश्यक नियुक्ती ॥४१॥ ते जाओ, फग्गुरक्खितं प्रति तेल्लकुडसमाणो, गोट्ठामाहिलं प्रति धयकुडसमाणो, एवं एस सुत्तेण य अत्थेण य उववेतो, एस तुम्भं है। | आयरिओ भवतु, तेहिं सव्वं पडिच्छितं, इतरोऽवि भणितो-जहाहं वढिओ फग्गुरक्खितस्स गोट्ठामाहिल्लस्स य तथा तुमे पट्टि गोष्टा ★ माहिलवृर्ष | तव्वं, ताणिवि भणिताणि-जहा तुम्भं मम वट्टिताई तहा एतस्सवि बढेज्जाह, अविय-अहं कते वा अकए वा ण रूसामि, एस न खमिहिति, एवं दोवि वग्गे अप्पाहेत्ता भत्तं पञ्चक्खातं, कालगता, दियलोगं गता । इतरेणवि सुतं जहा आयरिया कालगता, | ताहे आगतो पुच्छति गोट्ठामाहिल्लो-को गणहरो ठवितो ?, कुडगदिढतो य सुतो, ताहे वीसुं पडिस्सए ठाइतूण पच्छा आगतो, | ताहे तेहिं सव्वेहिं अन्भुद्वितो, इह चव ठायह, ताहे णेच्छति, सोवि बाहिं ठितो अण्णाणि बुग्गाहेति, ताणि ण सति । इतो य आयरिया अत्थपोरिसिं करेंति, सो ण सुणति, भणति-तुब्भत्थ निष्फावकुडा कहेह, तहेव तेसु उद्वितेसु विंझो अणुभासति, अट्ठमे कम्मप्पवादपुव्वे कम्मं वणिजति, किह कम्मं अच्छति?, जीवस्स कम्मस्स य कहं बंधो , तत्थ ते भणंति|बद्धं पुढं निकातिय, बद्धं जहा सूतिकलावओ, पुढे जहा घणनिरंतराओ कताओ, निकाइतं जथा तावेतूण पिट्टिताओ, एवं कम्म रागद्दोसेहिं जीवो पढमं बंधति, पच्छा तं परिणाम अमुचतो पुढे करेति, तेणेव सकिलिटुं परिणाम अमुचंतो किंचि निकाएति, | निकाइतं निरुवक्कम उदए, णवरि अण्णहा त नवि वेतिज्जति, ताहे सो गोट्ठामाहिलो वारेति, एचिए ण भवंति, अण्णदावि | अम्हेहिं सुतं, जदि एत्तिए कम्मं बद्धपुट्ठनिकातितं एवं भे मोक्खो न भविस्सति, कह खाति बज्झति ?, भणति-सुणह ॥४१३॥ पुठ्ठो जथा अबद्धो कंचु०॥ ९--९ ॥ १४३ मू. भा । जथा सो कंचुओ तं कंचुइणं पुरिसं फुसति, ण पुण सो| SUSA
SR No.600290
Book TitleAavashyak Sutram Purv Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1928
Total Pages620
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size13 MB
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