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________________ NCE दर्शना श्रीदशवैकालिक चूर्णी २ अध्ययन ॥९५॥ 'दसणाणचरितं'गाहा (१८३-१०१ ) सो य भावायारो पंचविही, तं०-दसणायारो णाणायारो चरित्तायारो तवायारो वीरियायारो, तत्थ दंसणायारो सो अढविहो भवइ, 'निस्संकिय गाहा (१८४-१०१) तत्थ संका दुविहा, तं०- देससका य सव्वसंकाय, तत्थ देससंका जहा समाणे जीवत्ते कहमेस भविओ इमो अभविउत्ति, ण पुण चिंतेइ जहा भावा हेउगेज्झा अहेतुगेज्झा य, तत्थ हेउगेज्झा जहा जीवस्स अत्थित्तं एवमादी, अहेउगेज्झा जहा भविया अभविया य, (केवलि) नेयो भावोत्ति, एसा देससंका, सब्वमेयं पागयभासाए बद्धं अण्णण व कुसलकप्पियं होज्जत्ति एसा सव्वसंका, तत्थ देससंकाए सव्वसंकाए य इमं उदाहरणंकप्पटुगा दोण्णि जहा आवस्सए तहा भणियव्वं, एवं सो जहा पेज्जावमणेण मरणं संपत्तो, एवं जो जिण्णप्पणीएसु भावेसु संक करेइ सो संसारेसु चिरं भमीहिति, तम्हा संका न कायव्वा, जे न करेहिंति संकं सो इतरकप्पटगो जहा पंचलक्खणाणं भोगाणं आभागी जाओ तहा सोवि जिणपण्णत्तेसु संकं अकरेमाणे सग्गमोक्खाणं आभागीभविस्सइ, तम्हा संका ण कायव्वा । इयाणं कंखा, सा दुविहा-तं०-देसे सव्वे य, तत्थ देसकंखा जहा कोई एगं कुतित्थियमतं कंखइ, ण सेसाणि मताणि, एसा देसकंखा भण्णइ, अण्णो पुण सव्वपावादियमयाई कंखइ सा सव्वकंखा भण्णइ, एताए दुविहाएवि कंखाए इमं उदाहरणं-राया अमच्चो य आसेण अवहिया अडवि पवेसिया, जहा आवस्सए तम्हा कंखा ण कायव्वा । इदाणि वितिगिच्छा, सा दुविहा-देसे सव्वे य, तत्थ देसवितिगिच्छा सोहणं साहूणं जइ पुण जीवाउलो न लोगो दिट्ठो होतो तोसुटुयरं होन्तंति, एवमाइदेसवितिगिच्छा भण्णइ, इवाणिं सववितिगिच्छा-जइ सव्वं सुकरं जिणेहिं दिडे होतं तओ सुहं अम्हारिसा करेंता, तत्थ उदाहरणं-चोरो उज्जाणे जल हिययत्तणं मोत्तूणं विज्ज साहित्ता आगासेणुप्पइओ, इतरो गहिओ, जहा आवस्सए तहेव, तहा वितिगिच्छा ण कायव्वा, अहवा CACASS 4%95555 H ॥९५॥ AA
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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