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________________ मूर्छा द्धिसंनिधि त्यागः राण, भावुछ भावुछ अन्नायउंछ, भावपुलाए श्रीदश- दोऽवि एगठा, अच्चत्थणिमित्त आयरणिमित्तं च पउंजमाणा ण पुणरुत्तं भवति, अहवा मुच्छियगहियाणं इमो विसेसो भण्णइ, वैकालिक तत्थ मुच्छासदो मोहे दव्यो, गेहियसद्दो पडिबंधे दहब्बो, जहा कोइ मुच्छिओ तेण मोहकारणेण कज्जाकजं न याणइ, तहा चूर्णी. सोऽवि भिक्खू उवहिंमि अज्झाववण्णो मुच्छिओ किर कज्जाकजं न याणइ, तम्हा न मुच्छिओ अमुच्छिओ, अगिीद्धओ अबद्धो १० भिभ ण्णइ, कहं ?, सो तमि उवहिमि निच्चमेव आसन्नभन्चत्तणेण अबद्धो इव दट्ठन्यो, णो गिद्धिए अगिद्धिए, 'अन्नायउंछं' णाम उंछं चउन्विहंणामठवणदव्यभावउंछति, नामठवणाओ गयाओ, दबुंछ तावसादीणं, भावुछ जमण्णायमण्णाएण उप्पातिज्जति ॥३४६॥ तं भावुछ भण्णति, एत्थ भावुछेण अधिगारो, सेसाओ उच्चारितसरिसत्तिकाऊण परूविया, तं भावुछ अन्नायउंछ भण्णइ, पुला एवि चउन्विहं, तं0- नामालाए ठवण. दव्व० भावपुलाएत्ति, णामठवणाओ गयाओ, दव्वपुलाओ पलंजि भण्णइ, भावपुलाए जेण मूलगुणउत्तरगुणपदेण पडिसेविएण णिस्सारो संजमो भवति सो भावपुलाओ, एत्थ भावपुलाएण अहिगारो, सेसा उच्चारियसरिसत्तिकाऊण परूविया, तेण भावपुलाएण निपुलाए भवेज्जा, णो तं कुब्वेज्जा जेण पुलागो भवेज्जत्ति, कयविक्कया पसिद्धा, संनिही' असंणादीणं परिवासणं भण्णइ, तातो कयविक्कयातो सन्निधीतो य विरए भवेज्जा, 'सव्वसंगा वगए'त्ति तत्थ संगावगते नाम संगोत्ति वा इंदियथोत्ति वा एगठा, सो य संगो दुवालसविहस्स तवस्स सत्तरसविहस्स 3य संजमस्स विघायाय होज्जा, सो सब्बो संगो अवगओ जस्स सो संगावगओ भण्णइ, सो एवंगुणजुत्तो भिक्ख भवतित्ति । किंच 'अलोलभिक्खू०' ॥ ४७७॥ वृत्तं, जइ तितकडुअकसायाई रसे अप्पत्ते णो पत्थेइ से अलोले, भिक्खुत्ति वा| - - ॥३४६॥ -- -
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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