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________________ त्रिसपानविरतिः सूक्ष्माष्टकं श्रीदश-18 वरतो मवेज्जा, 'पासेज्ज विविहं जगं' गामनगरतिरियमणुयदेवेसु विविहं कम्ममलमणुभवमाणंति इमं जगं पासेज्जा, पासिऊण वैकालिकाय उवरतो भवेज्जा, एसा ताव धूलसरीरेसु विरती भणिया । इयाणिं सुहमाण भण्णति-'अट्ठ सुहुमाइ (णि०)॥३४७॥ सिलोगो. चुणी अट्ठचि संखा, अतीव सहाणि सुहुमाणि, ताणि पेहाए णाम उवयोगं दाऊण, 'जाई' ति अणिदिवाणि, जाणित्तु णाम उवल८ आचार भिऊण, संजए साधू, तत्थ आस णाम दयाहिकारी निसीए, चिट्ठ नाम उहिओ दयाहिकारी अच्छेज्जा, सए णाम दयाहिकारी प्रणिधौ णिद्दामोक्खं करेज्जा, अह कतराणि अट्ट सुहुमाणि?, भण्णइ-'सिणेहं पुप्फसुहुमं च ।। ३४९ ॥ सिलोगो, सिणेहसुहुमं पुप्फ॥२७८॥ सुहुमं पाणसुहुमं उचिंगसुहूं पणगसुहुमं बीयसुहुमं हरितसुहुमं अंडगसुहुमंति, तत्थ सिणेहसुहुम पंचपगारं, तं०-ओसा हिमए ६ महिया करए हरतणुए, पुप्फसुहुमं नाम वडउम्बरादीनि संति पुप्फाणि, तेसिं सरिवनाणि दुविभावणिज्जाणि ताणि सुहुमाणि, पाणसुहुम अणुद्धरी कुंथू जा चलमाणा विभाविज्जइ थिरा दुधिभावा, एयं तं पाणसुहम, उत्तिंगसुहम कीडियानगरं, तत्थ पिपीलियाणा(ण्डादि अणायसुहुमा सचा दुविभावणिज्जा भवंति, पणगसुहुमं णाम पंचवन्नो पणगी वासासु भूमिकट्ठउबगरणादिसु तहब्बसमवन्नो पणगसुहुमं, बीयसुहुम नाम सरिसवादि सालिस्स वा मुहमूले जा कणिया सा बीयसुहुमं, सा य लोगेण उ सुमहु(धुम)त्ति भण्णइ, हरितमुहुमं णाम जो अहुणुट्टियं पुढविसमाणवणं दुधिभावणिज्जं तं हरियसुहुमं, अंडसुहुमं पंचप्पगारं, तंजहा उद्दसियंडो पिवीलियंडो उक्कलियंडे हलियंडा हलिहलियंडो, तत्थ उइंसिया मच्छिया तीए अंडं उइंसियड, पिपीलियाअंडयं नाम कीडियअंडगं, उक्कलियाअंडं वक्खोइलियाअंडगं, हलियंडगं भणियाअंडयं, हलोहलिअंडं सरडीअंडगंति । 'एवमेआणि जाणित्ता' ॥ ३५० ।। सिलोगो, एवमेयाणि अट्ठ सुहुमाणि सव्वप्पगारहिं वण्णसंठाणाईहिं णाऊणंति, अहवा ण ॥२७८॥
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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