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________________ "- श्रीदशवैकालिक चूर्णी ॥२६४॥ दुट्ठा नाम विरुद्धा, तहेव वक्कसुद्धिं जाणमाणेण दुटुं गिरं वज्जयंतेण सता मितं अदुटुं अणुवीइ भासियव्वंति, मितं दुविधति- भाषा| सद्दओ परिमाणओ य, तत्थ सद्दओ अणुच्च उच्चारिज्जमाणं मित भवइ, परिमाणओ कारियं मानमितं भवइ, अटुं नामद धिकार देसकालोववनादी, अणुवीइ णाम पुचि बुद्धीए अणुचिंतिय भासियव्वंति, स एवं भासमाणो 'सयाण मज्झे लहई पसंसणमिति तत्थ सया णाम जे गुणदोसविहण्णू तेसिं सयाण मज्झे पसंसणं लब्भइति, जहा अहो सुसिलिट्ठसुअधीयवयणोति, एवमाइ, जम्हा य पसंसणमादी गुणा लम्भंति अतो 'भासाइ दोसे य गुणे य० ॥३३३॥ जम्हा भासदोसगुणण्णे साधू, तीसे भासाए जा दुट्ठा भासा तां विवज्जेज्जा, सा पुढविमादिएसु छसुकाएसु, संजए, समाणभावे अवस्थिए सामणिए, सदा सव्वकालं | जए, स एवंगुणसमाउत्ते, वदेज्जा 'बुद्धे हिअमाणुलोमि तत्थ हितं नाम अपीडाकर, अणुलोमियं नामाकडुगं फरिसादिदोसवज्जियं, अहवा अणुलोमियं नाम तं भासं भासेज्जा जं भासमाणो अभासओ लब्भइ, एस ताव इह लोए पसंसणादी गुणो भणिओ । इयाणि इहलोइओ पारलोइओ य भण्णइ- 'परिक्खभासी० ॥ ३३४ ॥ वृत्तं, 'परिज्जभासी' नाम परिज्जभासित्ति वा परिक्खभासित्ति वां एगट्ठा, सुटुं सम्मं सोतादीणि इंदियाणि अहियाणि जस्स सो सुसमाहिइंदिओ, चउरो कोहादिकसाया अवगता जस्स उवसंता वा सो चउक्कसायावगए, 'अणिस्सिओ' नाम न निस्सिए अणिस्सिए, सव्वपडिबंधविप्पमुक्केत्ति वुत्तं भवति, स एवंविहो साहू 'निहणिऊण धुन्नमलं पुरेकर्ड' ति, तत्थ धुण्णंति वा पावंति वा एगट्ठा, धुण्णमेव मलो, पुच्चि कयं पुरेकर्य, धुणिऊण इमं लोग आराहइ, न केवलं इमं लोगं आराहयति, परलोगाराहणाओ मोक्खो, तमवि ८ राहणाओ मोक्खा, P॥२६॥ २५ आराहयति, सावसेसकम्माको पुण देवलोगसुकुलपच्चायातिं लक्ष्ण पच्छा सिझंति । ति बेमि नाम तीर्थकरोपदेशाद् ब्रवीमि, RSSCRECI CHANA
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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