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________________ भाषाधिकारः चूर्णी श्रीदश #मेहो निययं पयोदो, पयोदो णाम पयं-पाणीयं भण्णति तं पओ ददातीति पयोदो, अहवा बट्टेबलाहएत्ति वएज्जा, पवरसिओ वैकालिक | वा बलाहगोत्ति वएज्जा, आह-कहं पुण नभं वत्तव्वं ?, भण्णइ-'अंतलिक्खत्ति णं बूआ.' ॥३३०॥ सिलोगो, तत्थ नभं | अंतलिक्खंति वा वदेज्जा, गुज्झाणुचरितंति वा तं, अंतियं अंतलिक्खं अभियं 'गुज्झणुचरियं ति, मेहोवि अंतरिक्खो भण्णइ, गुज्झगाणुचरिओ भण्णइ, महामाणवरायादि दठूण रिद्धिमंतमालवेज्जा, भणियाणि अवयणिज्जाणि वयणिज्जाणि य । सव्वसंखेवो ॥२६३॥ ४ाइमो, तंजहा-'तहेव सावज्जणुमोअणीगिरा० ॥ ३३१ ।। वृत्तं, 'तहेव' त्ति जहा हेडिल्लाणि अवयणिज्जाणि परिहरियव्वाणि हातहा काइ सावज्जणुमोअणी भासा ण भाणियब्वा, इह सा सव्वपयत्तण वज्जेयब्वा, जहा सुट्ट हडो गमो, सुठु सेणा णिघातिया एवमादि, ओहारिणी णाम संकिपा, भणिय- से नूर्ण भंते ! मन्नामीति ओहारिणी भासा ?, आलावगो, परोवघातिणी नाम जीवोवघातसहिता, जीवए वा परो हालिज्जइ सा परोवघाइणी ॥ किंच- 'से कोह लोह भय हास माणवो, न हासमाणो' | तत्थ सेत्ति साहुस्स णिद्देसो, तत्थ कोहो आदी लोभो अंते, आईअंतग्गहणेण मज्झे वट्टमाणा माणमाया गहिया, भयहास| गहणेणं पेज्जादिदोसा गहिता, माणवा इति मणुस्सजातीए एस साहुधम्मोत्तिकाऊण मणुस्सामंतणं कयं, जहा हे माणवा ! अवि हसंतोऽवि मा अभास भासेज्जा, किं पुण कोहादीहिंति, इयाणि वक्कसुद्धीय फलं भण्णइ,तंजहा-'सवक्कसुद्धिं समुपहिआ मुणी० ॥ ३३२ ।। सिलोगो, 'सवक्कसुद्धिं' ति स इति साधुणो णिद्देसो, जहा कोइ सभिक्खू, एवं विविधं वक्कसुद्धी, समं उवेहिया समुपहिया, अहवा सकारो सोहणअत्थे वट्टइ, सोहणं वनकसुद्धिसमं उबेहिया, अहवा सगारो अतणो णिद्देसे वइ, | जहा अत्तणो वक्कसुद्धि समं उवेहिया समुपेहिया, 'मुणी' नाम मुणित्ति वा णाणिति वा एगट्ठा, जा य गिरा दुट्ठा हेट्ठा भणिया, ॥२६३॥
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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