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________________ श्रीदशवैकालिक चूर्णी ८ आचार प्रणिधी ॥२६५॥ ASTR न स्वाभिप्रायेणेति । इदाणिं नया-'णायंमि गिहियव्वे गाहा, 'सव्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता०'गाहा, पूर्ववद् ॥ इन्द्रियादि॥ वाक्यशुद्धयध्ययनचूर्णिः समत्ता ॥ प्रणिधिः I एवं सो भासासमिओ धम्मं कहेइ, तो तस्स सोऊण जइ कोई पब्बएज्जा ताहे तस्स इमं आयारपणिधिं उवइसेज्जा, अहवा | तेण धम्मं कहयंतेण अपसत्थपणिधाणं वज्जयंतेण पसत्थेण आयारपणिधाणेण कहेयव्वंति, एतेणभिसंबंधेणागतस्स अज्झयणस्स चत्तारि अणुयोगदाराणि वत्तव्याणि, जहा आवस्सए, णवरं इह णामनिप्फन्नो भण्णइ, सोय णामाणिप्फण्णो दुविधो, तं०-आयारो पणिही य, तत्थ पढमं आयारो भण्णइ-'सो पुदिवं उद्दिठ्ठो.' ॥ २९५ ॥ गाथापुब्वद्धं, जहा जो खुड्डियायारए भणिओ | |एत्थ सो चेव अहीणाइरित्तो भवतित्ति । इयाणि पणिधी भण्णइ, सो य चउविहो, तंजहाणामपणिही ठवण०दव्व०भावपणिहीत्ति, || *णामठवणाओ गताओ, दव्वपणिही य इमेण गाथापच्छद्धेण भण्णइ-'दुविधो य होइ पणिधी' सो इमो, तं०-'दब्वे निहाणमाई.' ॥ २९६ ॥ गाथा, पुव्वद्धं, दवपणिधी जहा णिहाणगं, पणिहि णाम निक्खिवियंति वा पणिहाणंति वा एगट्ठा, आदिगहणेण अन्नाणिवि गहियाणि मायापक्खित्वाणि दव्वाणि, दव्यपणिधी जहा पुरिसो आयापच्छादणनिमित्तं इत्थिवेसं | काऊण णासेज्ज वा पविसेज्ज वा, जहा मायाकारो चक्खुमोहणं काऊण सबमेक्कतरं व पक्खिवइ एवमाइ दव्वपणिधी, भावे ॥२६५।। इंदिअनोइंदिअ पच्छदं, भावपणिधी दुविधो, तंजहा-इंदियपणिधी नोइंदियपणिधी य, इंदियपणिधी दुविधो-पसत्थो अप्प| सत्थो य, तत्थ पसत्थो इंदियपणिधी इमो-'सद्देसु अरूवेसु अ० ॥ २९७ ॥ गाथा, सोयचक्खुघाणजीहाफासाणं पंचण्हं C OSCHOTE AA2
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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