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________________ श्रीदश-है वैकालिक चूर्णी ॥२४॥ SARKA4-% अण्णत्ते जहा सुद्धवंसो सो देवदत्तो, अणण्णत्ते जहा सुद्धदंतो, आदेसव्वसुद्धी गता। वण्णरसगंधफासे० ॥२८७॥ गाथा, वाक्य- . पहाणदव्वसुद्धी इमेसु ठाणेसु भवइ, तं०-वण्णेसु गंधेसु रसेसु फासेसु जा समणुनया सा पहाणवक्कसुद्धी भवति, समणुना नाम शुध्ध्ययने दरिसणिज्जत्ता, तत्थ वन्नेसु सुकिल्लो बनो पहाणो गंधेसु सुरभी पहाणो रसेसु महुरो पहाणो फासेसु मउयलहुयउण्हणिद्धा शुद्धि निक्षेपाः पहाणा, अहवा वन्नरसगंधफासेसु जो जस्स संमतो सो तस्स पहाणो, संमओ नाम अभिप्रेतो, पहाणसुद्धी गता, गया य दव्व सुद्धी । इयाणि भावसुद्धी भण्णइ, तंजहा- 'एमेव भावसुद्धी० ॥२८८॥ गाथापुव्वंद्धं, 'एवमेव' त्ति जहा दब्बसुद्धी तातिविधा दव्वादि एवं आवसुद्धीवि तिविधा, तं०-तम्भावसुद्धी आदेसभावसुद्धी पहाणभावसुद्धी य, तत्थ तब्भावसुद्धी आदेस भावसुद्धी य इमेण गाथापच्छद्रेण भणंति, तंजहा-तम्भावगमाएसो अणण्णमीसा हवइ सुद्धी० ॥ २८८ ॥ गाथा४. पच्छद्धं, तस्य तब्भावसुद्धी जहा तंमि गतो भावे सो अहिकंखइ, जहा बुभुक्खिओ अन्नं तिसिओ पाणं एवमादि । इदाणिं आदेस-81 भावसुद्धी, सा दुविधा, तंजहा-अण्णत्ते अणण्णत्ते य, तत्थ अण्णत्ते जहा सुद्धभावस्स साहुस्स एस आयरिओ, अणण्णते जो जेण भावेण आदिस्समाणो न विरुज्झइ, जहा सुद्धसभावो साहू । इयाणि पहाणभावसुद्धी भण्णइ, तंजहा- 'दंसणनाणचरित्ते ४।। २८९ ॥ गाथा, पहाणभावसुद्धी जं दंसणादीण आदिस्समाणाणं सा पहाणभावसुद्धी भण्णइ, तत्थ दंसणपहाणसुद्धी खाइगं * दसणं, नाणपहाणसुद्धी खाइगं गाणं, चरित्तपहाणसुद्धी य अहक्खायं चरितं, तवपहाणसुद्धी य अम्भितरतवस्स सम्ममाराहणाए, ॥२४१॥ 5 तेहिं दसणाईहिं परिसुद्धेहिं जम्हा साहू विसुद्धकम्ममलो भवइ अओ अविसुद्धो सुद्धो भवइत्ति , एत्थ भावविसुद्धीय अधिकारो, लासेसा उच्चारितसरिसत्तिकाऊण परूविया, सुद्धी गया । सीसो आह-वक्कसुद्धीए कि पओयणंति ?, आयरिओ भणइ- सुद्धेण| RECR765
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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