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________________ S श्रीदश- व भणिया, हव्वभावभासा गया । इयाणिं सुतभावभासा भण्णइ, तं च-'सुअधम्मे पुण तिविहा०॥ २८१ ॥ श्रुतभाववैकालिक अद्धगाथा, जा सुतधम्मोवउत्तस्स भासा सातिविधा-सच्चा मोसा असञ्चमोसा, सच्चा इमेण गाहापच्छद्धेण भण्णइ-जं सम्म- भाषा चूर्णी. | हिट्ठी सुते उवउत्तो भासं भासइ सा णियमा सच्चा । इयाणि मोसा भण्णइ, तं०- 'सम्मदिट्ठी उ सुअंमि० ॥२७२॥ गाया, शुद्धि|सो चेव सम्मद्दिड्डी सुते अणुवउत्तो जया अहेउज्जुत्तं भासइ तया मोसा भण्णइ, जहा तंतूहि घडो निप्फाइज्जइ मट्टियापिंडाओ निक्षेपाः স্থত্তি অ |पडो एवमादि मोसा, सा सम्मद्दिहिस्स भवति, मिच्छादिट्ठी पुण उवउत्तो अणुवउत्तो वा चउविधंपि भासं भासमाणो मोसा-10 ॥२४॥ मेव भासइ, कहं ?, तस्स वयणं उम्मत्तवयणमिव सच्चासत्तणेण अप्पमाणं भण्णइ । इयाणिं असच्चामोसा भण्णइ, तं- हवइ उ असच्चमोसा.'५२८४ ॥ गाथा, सच्चा मोसा य, एतातो दोऽवि भासाओ चरित्ते भवंति, तत्थ सच्चा नाम जं भासं भासंतस्स सच्चं मोसं वा चरित्तं विसुज्झइ, सव्वावि सा सच्चा भवति, जं पुण भासमाणस्स चरितं न सुज्झति सा मोसा भवति, 18 अथवा जं भासं भासमाणो सचरित्तो भवति सा सच्चा, जं भासं भासमाणो सो अचरित्तो भवइ सा मोसा, असञ्चामोसा एवं दुबिहा भण्णइ, वकं गतं। इयाणिं सुद्धी भण्णइ-'णामंठवणासुद्धी० ॥२८५।। गाथा, चउबिहा सुद्धी भवइ, तंजहाणामसुद्धी ठवणसुद्धी दव्वसुद्धी भावसुद्धित्ति, तत्थ नामठवणाओ गताओ । दव्वसुद्धी इमा, तंजहा-तिविहा उ ( य) दव्व-12 सुद्धी०॥ २८६ ।। गाथापुव्वद्धं, तिविधा दव्यसुद्धी भवइ, तंजहा--दव्वसद्धी आदेससुद्धी पहाणसुद्धी य, तत्थ दव्यसुद्धी आदेस* सद्धी य इमेण गाथापच्छद्धण भण्णइ, तं०-तद्दव्वगमारसो अणण्णमीसा हवइ सुद्धी ॥ २८६ ॥ अद्धगाथा, तत्थ दव्वर ॥२४॥ सुद्धी नाम जं दव्वं अन्नेण दव्वेण सह असंजुत्तं सुद्धं भवइ जहा खीरं दधिवा, आदेसदव्वसुद्धी दुविधा-अण्णत्ते य अणण्णत्ते य, URGEOCTCCCCC -
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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