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________________ % क्रोधादिमृषा आयरिओ आह- तस्स कोहाउलचित्तत्तणणं घुमक्खरमिव तं अप्पमाणमेव भवति, जहा घुणक्खरं सच्चमवि पंडियाणं चित्तगाहगं वैकालिक जान भवति, कोवाकुलचित्तो जे संतमवि भासति तं मोसमेव भवति, तत्व कोहेण व अनेन प्रकारेण मृषामभिधास्यते, जहा कोइ चूर्णी साहुणा धीयाराई पुच्छिओ-अमुगं नगरं कतरो पंथो वच्चइ ?, तओ सो अपवरद्धकुद्धो अन्नमय पंथं ववदिसइ, ण याणामि वा ७ वाक्य- भणति, पिया कुद्धो पुत्तं भणइ-न तुम मम पुत्तोत्ति, एवमादि, माणनिस्सिया जहा गामनगरसमवाएसु कस्स कत्तिओ अत्थोत्ति शुद्धि अ० पुच्छिए अप्पधणोऽवि भणइ-जहाऽहं कोणी(डी)धणोत्ति एवमादि,मायाणिस्सिता जहा मायाकारो चरखमोहणं काउं भणइ-आगासं लोगओ पविट्ठो, एवमादि, लोभणिस्सिता जहा कूडमाणववहारिणो वाणियगा, कोइ लोभेणं मोस भासेज्जा एवमादि, पेज्ज॥२३७॥ Pाणिस्सिया जहा हाणुरागेण भणह-दासोऽहं तव एवमादि, दोसणिस्सिता जहा भगवओ वद्धमाणसामिणो संता गुणा केइ पावकम्मा छादयंति,जहा न एसो सवण्णू,ण एवं सक्कमादी सुरा पज्जुवासंति, किन्तु एसो इंदियालियप्पयोगो विज्जातिसओ वा एवमादि, हासणिस्सिया जहा कस्सइ किंचि तारिसं गोवेऊण पुच्छिज्जमाणो भणइ-न याणामित्ति, एवमादि, भयणिस्सिया जहा चोरो तालिज्जमाणोऽवि मरणभयाभिभूओ भणइ- णाहं चोरोत्ति एवमादि, अक्खाइयानिस्सिया जहा भारहरामायणादि, उवधायनिस्सिया जहा अचोरं चारेमिति एवमादि। मोसा गता। इदाणिं सच्चामोसा भण्णइ,किंचि तीए सच्चं किंचि मोसंति, सा इमा दसविधा, तं०- उप्पन्नविगयमीसग०॥ २७७ ।। गाथा, उप्पण्णमीसिया विगतमीसिया उप्पचविगतमीसिया जीवमीसिया अजीबमीसिया जीवाजीवमीसिया अणंतमीसिया परिसमीसिया अद्धामीसिया अद्धद्धामीसिया इति, तत्थ उप्पअमीसिया जहा कोइ भणेज्ज-एयंमि नगरे दस दारगा जाता, तत्थ कदाइ ऊणा अधिगा वा होज्जा एवमादि उप्पण्णमीसिया, विगयमी auratoantatio CAKCIRCRAC-RRECR ॥२३७॥ n DAR
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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