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________________ शार भीमा- पावइ, परलोगवि सो अणालोइयपडिक्कतो कालगओ देवकिब्विासियत्ताए कम्मं पकरेति । सीसो आह-जइ तारिसेहिं देवत्तं लिन्भइ, किमेवरेण जत्तणं?, भण्ण इ-तारिसस्स बंभवयाइयाण पालणादाणं तं फलं, तहविऽत्थ असोहणं । अत:--'लणवि देवत्तं' चाँद२०६ ॥ सिलोगो, किं तेण देवत्तेण जत्थ सो ओहिनाणलद्धीए न जाणइ-कोऽहं पुव्वं आसी ? किं वा कयंति , अहवा सो इमे न याणइ-जहा इमं दुक्कडं कयं जेणाहं देवत्तणेवि सति आभियोगो अंतत्थो वा जातोत्ति, एस ताव देवलोगे अवायो भणि ओ । इदाणि ताओ देवलोगाओ चुतस्स भण्णइ-तत्तोऽवि से चइत्ताण' ॥२०८॥ सिलोगो, जइवि कहवि सो तओ ॥२०५॥ MIचइत्ता देवलोगाओ माणुस्सेसु उववज्जइ जत्थ बहुणावि कालेण बोधिलाभो न भवति । 'एअंच दोसं दढणं, नायपुत्तेण भासि ॥२०८॥ सिलोगो, एवं नाम जो हेट्ठा इयाणि देवकिब्बिसादि दोसो भणिओ, एयं ददृणं, चकारेण सूच्चति जहा कित्तियं भणिहामि, अण्णेवि भगवया णायपुत्तेण एत्थ बहवे दोसा भासिया, तम्हा तेसिं दोसाणं परिहस्णनिमित्तं अणुमायपि मेहावी, मायामोसे विधज्जए' तत्थ अणुसद्दो थोवे वट्टइ, थोषमवि मायामोसं विवज्जए, किमंग पुण बहुमंति 2। इदाणि दोण्हपि उद्देसगाणं उपसंहारो कीरइ, जहा--'सिक्खिऊण भिक्वेसणसोहि ॥२०९॥ सिलोगो, सिक्खिऊण णाऊणं, भिक्खाए एसणा भिक्खेसणा, भिक्खमग्गणत्ति वुत्तं भवति, ताए भिक्खाए उम्ममुप्पायणेसणादीहिं सिक्खऊण संजता | साधुणो भण्णन्ति बुद्धा नाम अरहंतो भगवतो, तेसिं संजतबुद्धाणं सगासे पिंडेसणज्झयणं सिक्खिऊणं 'तत्थ' त्ति ताए भिक्खेस-1 8 णसुद्धीए साहुणो 'सुप्पणिहिइंदिए तिव्वलज्जेण गुणवया विहरियव्वं सुट्ठ पणिहिताणि इंदियाणि जस्स सो सुप्पणिहि इंदिओ, लज्जसंजमो-तिव्यसंजमो, तिव्वसद्दो पकरिसे बट्टइ, उकिट्ठो संजमो जस्स सो तिव्वलज्जो भण्णइ, गुणो जस्स अस्थि सो SAMACXCONMFr ॥२० CHES
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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