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________________ उद्देश। २ श्रीदश एगइओ णाम कोइ रसलोलुयाए गिलाणादीहिं कारणीह तेणियाए 'ण मे कोइ विजाणयित्तिकाऊणं सुरमरगादीणि पिएज्जा; बैंकालिक | अहवा गिहत्थे तेणियं इमेणप्पगारेण करेज्जा, आयरियस्स गिलाणस्स वा दाहामि, मा नाम कोइ वियाणतित्तिकाऊण आइएज्जा, तस्सवपगारस्स दोसा इहलोइयाइया भण्णमाणा सुणसुत्ति, तत्थ नियडी माया भण्णइ, ते य दोसा इमे-'वड्इ सुडिआ तस्तक' ५ अ० ॥ १९७ ॥ सिलोगो, सुंडिया नाम जा सुरातिसु गेही सा सुंडिआ भण्णति, ताणि सुरादीणि मोत्तूणं ण अन्न रोयइ, मायामासं च वड्वइ, कह?, जाहे सो पुच्छिऔ भवति ताहे भणइ-चाल्लोवाउलोऽवि एसो नत्थि,किंच-अयसो य से सपक्खे परपक्खे य भवति, जहा ॥२०३॥ नएस सो वियडपाउ एवमादि, 'अनिव्वाणी' नाम जाहे ताणि सुरादीण ण लब्भति ताहे तेसिं अभावे परमं दुक्खं समुप्पज्ज तित्ति, अहवा अणिव्वाणी मोक्खाभावो भण्णति, तहा असाधुता से भवति, असाधुया नाम असंजतत्तं भण्णइ, सा य असा| हुआ सययं भवति, सयय णाम सव्वकालं, सो य 'निच्चुब्विग्गो जहा तेणो० ॥ १९८॥ सिलोगो, किंच-'आयरिए नारा हेइ० ॥ १९९ ॥ सिलोगो, इदाणं तदोसविसुद्धाणं भत्तपाणादीणं जो भोत्ता सो भण्णइ, जहा-तवं कुव्वइ मेहावी. MI॥ २०१॥ सिलोगो, मेधावी दुविहो, तं०-गंथमेधावी मैरामेधावी य, तत्थ जो महंत गंथं अहिज्जति सो गंथमेधावी, मेरामेधावी | णाम मेरा मज्जाया भण्णति तीए मेराए धावातीत्त मेरामेधावी, पणीतस्स नाम नेहविगतीओ भण्णति, ते पणीए रसे विवज्जति, न केवलं पणीतरसं वज्जति, किन्तु मज्जप्पमादविरओ, तवस्सीत्ति वा साहुत्ति वा एगट्ठा, 'अइउकसो' ण तस्स एवमुक्करिसो भवइ जहाऽहमेव एगो साहू, को अण्णो ममाहितो सुंदरोति, एवमाइगुणजुत्तस्स साधुणो इहलोइए परलोइए य गुणे भणिहामि, तं०'तस्स पस्सह' ॥२०२ ॥ सिलोगो, 'तस्स'त्ति तस्स अमाइणो, कल्लाणंति वा सोहणंति वा एगट्ठा, 'कल्लाणं' मोक्खो RECEkatak-kNCAR C DURG ॥२०३३॥
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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