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________________ उद्देशः २ माणिवि-सालस्सी जायंति, तासायति अतो पातमवि3) श्रीदश- IMणु एस अत्यो प्रवि चेव भणिओ जहा 'सम्ममाणी पाणाणि बीयाणि हरियाई ति हरियग्गहमेण वर्णफई गहिया, किमत्थं. वैकालिक पुणो गहणं कयंति, आयरिओ भणइ-तत्थ अविसेसियं धणप्कइगहणं कयं, इह पुण सभेदभिण्णं वणप्फइकायमुच्चारियं, जं चूर्णी जहा अकप्पियं भवति तं तहा इमर पडिसेहेइ, तहा 'उप्पलं पडर्म वावि ॥ १७५ ॥ सिलोगो, सम्मद्दिया नाम पुवच्छि ण्णाणि जाणि ताणि अपरिणयाणि संमद्दणसंघट्टणाणि काऊण देइ, तमेवपगारं दितिय पडियाइक्खे-न में कप्पड तारिस । किंच जहा उप्पलादीणि सत्ताणि परिवज्जिज्जति तहा इमाणिवि--सालु वा चिरालियं०॥ १७७ ॥ सिलोगो, 'सालुग' नाम ॥१९७॥ ट उप्पलकन्दो भण्णइ, 'बिरालियं नाम पलासकंदो भण्णा, अहा बीए वस्सी जायंति, तीसे पत्ते, पत्ते कंदाजायंति, सा बिरालिया भण्णइ, कुमुदा उप्पला य पुष्वभणिया, तेसिं दोण्हषि णाली--णालिया भण्णइ, एयाणि लोगो खायति अतो पडिसेहणनिमित्त X| नालियामहणं कयंति, मुणालिया गयदंतसन्निभा पउमिणिकंदाओ निग्गच्छति, 'सासवनालिअं' सिद्धत्थगणालो, तमवि लोगो ऊणसंतिकाऊण आमगं चैव खायति, उच्छुखंडमवि पव्वेसु धरमाणेसु ता नेव अनवगतजीवं कप्पइ । किंच-'तरुणमं वा पालं.' ॥१७८॥ सिलोगो, 'तरुणगं' नाम अहुणुट्टियं 'पवालं' पल्लवो, सो रुक्खस्स वा हरियस्स वा होज्जा, रुक्खे जहा अबिलयाईणं, तणस्स जहा अज्जगमूलादीणं, आमगंनाम सचित्तं,परिवज्जए (परितो) वज्जए परिवज्जए। 'तरुणिअंधा छिवाडि' |॥ १७९ ॥ सिलोगो, 'तरुणिया' नाम कोमलिया, 'छिवाडी' नाम संगा, 'आमिया' नाम सचेतणा, 'सई भज्जिया' नाम एकसि मज्जिया, तं तहप्पगारं छिवाडिं देंतियं पडियाइक्खे । किंच-तहा कोलमणुस्सिन्न' ॥ १८॥ सिलोगो, कोलं दावर मण्णइ, अण्णे पुण भणति-सकिरिल्लो वेलयं, तमवि अणुस्सिनं न कप्पइ, 'कासवनालिय' सीवणिफलं मण्णइ, तमवि। ALSOURCAAA क ९७)
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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