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________________ उद्देश। २ श्रीदश पडिलहण समायरे, एवमादि, भणियं च-'जोगो जोगी जिणसासणंमि दुक्खक्खया पउजतो । अण्णोऽण्णमबाहतो असवत्तो होइ वैकालिक | कायब्वो ॥१॥' किंच 'अकाले चरसी० ॥ १६४ ॥ सिलोगो, तमकालचारि आउरीभृतं दट्टण अण्णो साहू भणज्जा, लद्धा चूर्णी | ते एयमि निवेसे भिक्खात्त ?, सो भणइ- कुओ एत्थ थंडिल्लगामे भिक्खत्ति, तेण साहुणा भण्णइ- तुम अप्पणो दोसे परस्स उवरिं ५ अ० | निवाडेहि, तुम पमाददोसेण सज्झायलोभेण वा कालं न पच्चुवेक्खसि, अप्पाणं अइहिंडीए ओमोदरियाए किलामेसि, इमं सम्भिवेसं |च गरिहसि, जम्हा एते दोसा तम्हा- 'सह काले चरे भिक्खु०॥१६५ ॥ सिलोगो, सति नाम विज्जमाणे काले हिंडियव्वं, ॥१९५॥ Gपुरिसकारो नाम जंघाबलादिसु बलं ताव हिंडियध्वं, अण्णायपिंडेसणयस्स परिसकारेण विणा वित्ती तु ण भवति, कयाइ पुरिस-द कारे कीरमाणेवि भिक्खं न लभेज्जा, तत्थ इमं आलंबणं कायव्वं- 'अलाभुत्ति न सोइज्जा' हा न लहामित्ति, निद्धम्मो उ खरंटइ लोगे, एरिसं न भाणियध्वं न चिंतेयव्वंति, किन्तु 'तवुत्ति अहियासए' ओमोयरिया अणसणाइ बारसविहतवअभंतरत्तिकाऊणं अधियासेयवं, कालजयणा गता । इदाणं खेत्तजयणा भण्णइ तहेवुच्चावया पाणा० ॥ १६६ ॥ सिलोगा, 'तहेवात जहा अकालो बज्जेयब्बो तहा इमंपि बज्जयवं, उच्चावया नाम नाणापगारा, अहवा उच्चावया पसत्थजातिदेहरूपवं-- ससरीरसंठाणादीहिं उववेता, अवया नाम जे एतेहिं चेव परिहीणा, ते उच्चावया पाणा पंथे वा पंथब्भासे भत्तट्ठाए बलिपाहुडियादिसु समागया दठ्ठण णो उज्जुयं गच्छेज्जा, किन्तु 'जयमेव परक्कमे जयं नाम परिहरइ, अहवा नो उज्जुयं गच्छति, एत्तो | संयतस्स अन्तराइयअधिकरणादयो दोसा भवंति । 'गोअरग्गपविट्ठो अ॥१६७ ॥ ॥ सिलोगो, गोयरग्गगएण भिक्खुणा प्राणो णिसियव्वं कत्थई घरे वा देवकुले वा सभाए वा पवाए वा एवमादि. जहा य न निसिएज्जा तहा ठिओऽवि धम्मकहावाद AKAMANAGir RECORCAMARCRECEPALACE ॥१९५।
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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