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________________ चूणी. श्रीदश- जन्न बहुं च पासेज्जा तत्थ जो देति सो चेव पुच्छिज्जइ जहा कस्सट्ठा पकडंति, केण वा कडंति, सा पुच्छिओ जइ भणइ- तुज्झजन्न बहुं च पासेज्जा तत्थ जादा ४ बालस्तन्यवैकालिकाद्वाए, ताहे ण पडिगाहिज्जति, अह भणइ- अण्णस्स कस्सइ पाहुणगादिस्स अहाए, तमेवं सोच्चा निस्संकियं सुद्धं साहुणा पडिगाहे याने विधिः यव्यंति, तहा 'असणं पाणगं' सिलोगो (११६-१७६) पुप्फेहि उम्मिसं नाम पुप्फाणि कणवीरमंदरादीणि तेहिं बलिमादि। ५ अ० ४ असणं उम्मिसं होज्जा, पाणए कणवीरपाडलादीणि पुष्पाणि परिकप्पंति, अहवा बीयाणि जहिं छाए पडियाणि होज्जा, अक्ख॥१८२॥ यमीसा वा धाणी होज्जा, पाणिए दालिमपाणगाइसु बीयाणि होज्जा, हरिताणि विरयसयाणेसु अल्लगमूलगादीणि पक्खित्ताणि होज्जा, जहा य असणपाणाणि उम्मिस्सगाणि पुप्फादीहिं भवंति एवं खाइमसाइमाणिवि भाणियव्वाणि । किंच 'असणं पाणगं, सिलोगो (११८-१७६) उदगंमि णिक्खित्तं दुविहं, तं०- अणंतरणिक्खित्तं जधा नवनीतपोग्गलियमादि, परंपरनिक्खित्तं दहिपिंडो संपातिमादिभयेण छोढूण जलकुंडस्स उरि ठवितं, एयं परंपरनिक्खित्तं, एवमादि, उत्तिगो नाम कीडियानगरय, तत्थवि अणंतरं भाणियब्वं, पणओ उल्ली भण्णइ, उल्लिए फलए वा भूमीए वा अणंतरपरंपरठवियं देंतिय पडियाइक्खे-न मे कप्पइ तारिसं ॥ तहा ' असणं पाणगं' सिलोगो (१२०-१७६ ) संघट्टिया नाम जाव अहं साहूणं भिक्खं देमि ताव INमा उब्भराइऊणं छडिजिहिति तेण आवडेऊण देइ, हत्थपादादीहिं उम्मुगाणि संघहेत्ता देइ, सेसं कंठ्यं । तहा 'असणं 18 सिलोगो (१२२-१७६ ) उस्सकिया नाम अवसंतुइय साधुनिमित्तं उस्सिक्किा तहा जहा अहं भिक्खं दाहामि ताव मा उम्भा है। वेतित्ति, दंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस । तहा ' असणं पाणगं' सिलोगो ( १२२ ) उज्जालिया नाम तणाईणि ॥१८२॥ इंधणाणि परिक्खिविऊण उज्जालयइ, सीसो आह- उस्सक्कियउज्जालियाणं को पइविसेसो ?, आयरिओ आह-उस्सक्केति ACASS
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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