SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चूणों श्रीदश- कवाडंणो पणोलेजा,उग्गहंसी अजाइया (७८.१६६)साणी नाम सणवकेहि वि(उइ)ज्जड अलसिमयी वा,पावारी लोगपसिद्धी, वैकालिक एतेहिं चिलिमिली कज्जइ, तं काउं ताणि मिहत्थाणि वीसत्थाणि अच्छति. खायंति पियंति वा मोहंति वा, तं नो अवपंगुरज्जा,INI स्थानानि Exil किं कारण , तसि अप्पत्तियं भवइ, जहा एते एत्तिल्लयपि उवयारं न याणति जहा णावगुणियव्यं, लोगसंवबहारवाहिरा वरागा, Wएवमादि दोसा भवंति, कवाडं लोगपसिद्धं, तमवि कवाडं साहुणा णो पणोल्लयब्वं. तत्थ पुब्वभणिया दोसा सविससयरा भवात, ॥१७५॥ 5 एवं उग्गहं अजाइया पविसंतस्स एते दोसा भवंति, जाहे पुण अवस्सकयं भवति, धम्मलाभो, एत्थ सावयाण अस्थि जात अणु वरोधो तो पविसामो । गोयरग्गपविट्ठो उ, वच्चमुत्तं न धारए । ओवासं फासुयं नच्चा, अणुन्नवित्तु वोसिरे (७८-१९४० पुचि चेव साधुणा उवओगो कायव्यो, सण्णा वा काइया वा होज्जा णव चि वियाणिऊण पविसियव्वं, जइ वावडयाए उवयागा न कओ कएवि वा ओतिण्णस्स जाया होज्जा ताहे भिक्खायरियाए पवितॄण बच्चमुत्तं न धारेयव्वं, किं कारणं, मुत्तनिराध चक्खुवाघाओ भवति, बच्चनिरोहे य तेयं जीवियमवि रुंधेज्जा, तम्हा घच्चमत्तनिरोधो न कायव्वोत्ति, ताहे संघाडयस्स भायः णाणि (दाऊण) पडिस्सयं आगच्छित्ता पाणयं गहाय सण्णाभूमि गंत्रणा फासुयमवगासे उग्गहमणुण्णावेऊण वोसिरियव्वात । वित्थारो जहा आहनिज्जुत्तीए । किंच 'णीयद्वारं' सिलोगो (७९-१६७) णीयद्वारं दुविहं-बाउडियाए पिहियस्स वा, जामा उब्बरगाओ मिक्खा निक्कालिज्जइ तत्थ पलिट्ठए उवडियस्स वाउडियदोसो भवइ, साणमादी वा खाए ज्जा, जओ भिक्खा ॥१७५॥ निक्कालिज्जह तं तमसं, तत्थ अचक्खुविसए पाणा दुक्ख पच्चुवेक्खिजंतित्तिकाउं नीयवारे तमसे कोट्ठओ वज्जयवा। 'जस्थ पुप्फाणि' सिलोगो (८०-१८७) जत्थ कोद्गे वारे वा पुष्पाणि उप्पलकणवीरादीणि अमिलाणाणि चीयाणि वाहिमा *MA4%AS
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy