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________________ श्रीदशवैकालिक चूण ५ अ० ॥१६५॥ एते ताव मूलगुणा भणिया, इदाणि उत्तरगुणा भण्णंति एतेणाभिसंबंधेणागतस्स पंचमज्झयणस्स चत्तारि अणुओगदारा भाणियव्वा, जहा आवस्सए, नवरं इहं नामनिष्फष्णो भण्णइ-नाम ठवणापिंडो दव्वपिंडो य भावपिंडो य ' गाथा, णामनिष्फण्णे पिंडनिज्जत्ती भाणियव्वा, सा य सख्यावि नवहिं कोडीहिं समोयर, तं०-ण हणइ ण हणावेइ हणतं नागुजाणइ ण पयति ण पयावेइ पर्यंतं नाणुजाणइ न किणइ न किणावेइ किणतं नाणुजाण, एत्थ गाथा ' कोडीकरणं ' गाथा ( ६२-१६१ भा० ) एता नवकोडीओ दुहा कीरंति- उग्गमकोडी य विशुद्धिकोडा य, तत्थ उग्गमंकोडी नाम अविसोडिकोडी, तत्थ जा सा उगमकोडी सा छव्विहा, तं० आहाकम्मं पढमा अगमकोडी, उद्देसिया पाखंड समणनिम्गंथाण य कम्मं समोयरइ बितिया उग्गमकोडी, पूती कम्मं भत्तपाणपूतियं ततिया, मीसजाए घरमीसपासंडाणं चउत्था, बादरपाहुडियाए पंचमी, अज्झोयरए छट्ठा, एसा छव्विहा अविसोधिकोडी, सेसा विसोधिकोडी, तत्थ जा सां अविसोधिकोडी सा न हणइ न हणावेइ हणत नाणुजाणइ न पयति न पयावेइ पर्यंतं नाणुजाणइ न पयंति एतेसु समोयर, 'नव चेवहारस ' गाहा ( २६/५ - १६१) नव कोडीओ दोहिं रागदोसेहिं गुणिया अट्ठारस भवंति, ताओ चैव नव तिर्हि मिच्छत्ताण्णाणअविरतीहिं गुणियाओ सत्तावीस भवंति, सत्तावीसा दोहिं रागदोसेहिं गुणियाओ चउप्पण्णा भवति, ताओ चैव नव दसावघेण धम्मेण गुणियाओ विमुद्धाओ नउई भवंति सा नउई तिहिं नाणदंसणचरितेहिं गुणिया दो सत्तरा भवंति, गओ नामनिष्फण्णो निक्खेवो, सुत्तागमे सुत्तमुच्चारयच्वं अक्खलियं अमिलियं अविच्चामेलियं जहा अणुयोगदारे, तं च सुत्तं इमं - संपत्ते भिक्खुकामि असंभंतो अमुच्छिओ । इमेणं कम्मजोगेण, भत्तपाणं गवेसए (६०-१६३) 'आप्ल व्याप्तौ' पिण्डस्वरूपं ॥१६५॥
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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