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________________ श्रीदशवैकालिक चूर्णो. ४ अ० ॥१५३॥ नो भावओ, भावओ नो दव्वओ जहा कोऽवि चिंतेति को जाणइ कयावि सूरो उट्ठेइ ? इयाणि चैव भुंजामि, सो य सूरो पुत्रि चैव उडिओ मेहादिणा आवरिओ नावधारिज्जर जहा उडिओत्ति, अहूवा रातं मुंजामित्ति संकप्पेति, न चैव संपत्ती जाया, तस्स भावओ राईभोयणं णो दव्वओ, दव्वओवि भावओवि आउट्टियाए राई भुंजर, चउत्थो भंगो सुन्नो, 'छडे भंते! वए उबट्टिओमि | सव्वाओ राई भोयणाओ वेरमण' एत्थ सीसो आह- पंच महव्वयाणि जिणपवयणे सिद्धाणि, तो किमेयं राईभोयणं महत्रए वणिज्जमाणेसु भणियंति ?, आयरिय आह- पुरिमपच्छिमगाण जिणवराणं काले पुरिसविसेसं पप्पू पड़वियं, तत्थ पुरिमजिमकाले पुरिसा उज्जुजडा पच्छिमजिणकाले पुरिसा वंकजडा, अतो निमित्तं महन्वयाण उवरिं ठवियं, जेण तं महन्त्रयमिव मन्नता पण पिल्लेहिति, मज्झिमगाणं पुण एयं उत्तरगुणेसु कहियं, किं कारणं १, जेण ते उज्जुपण्णत्तणेण सुहं चैव परिहरति । 'इच्चेयातिं ' ( ९-१४९ ) इतिसद्दो परिसमत्तीए वट्ट, एयाई नाम जाणि इयाणि चैव हेट्ठा भणियाणि एताणि पंचवि रातीभोयणवेरमणछट्ठाणि 'अत्तहियाए उवसंपज्जिताण विहरामि अत्तहियं नाम मोक्खो भण्णइ, सेसाणि देवादीणि ठाणाणि बहुदुक्खाणि अप्पसुहाणि य, कहीं, जम्हा तत्थवि इस्सरो इस्सरतरो इस्सरतमो एवमादी हीणमज्झिम उत्तिमविसेसा उवलब्भंति, अणेगंतियाणि य सोक्खाणि, मोक्खे य एते दोसा नत्थि, तम्हा तस्स अट्टयाए एयाणि पंच महाव्वयाणि राईभोयणवेरमणछट्ठाई अन्तहियड़ाए उवसंपज्जित्ताणं विहरामि, उवसंपज्जित्ताणं विहरामि नाम ताणि आरुहिऊण अणुपालयंतो अब्भुज्जएण विहारेण अणिस्सियं गामनगर पट्टणाईणि विहरिस्तामि, अहवा गणहरा भगवतो सगासे पंचमहन्वयाणं अत्थं सोऊण एवं भणति- 'उवसंपज्जित्ताणं विहरिस्तामि' ॥ षष्ठस्योत्तरगुणता ॥१५३॥
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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