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________________ धर्मकथा श्रीदश-IN | दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहविवागसंजुत्ता भवंति , कहं १, जहा पावपसत्तिमंतो बालपभितिमेव अंतकुलेसु वैकालिक उप्पप्णा रेवययकोढाईहिं रोगेहिं दारिदेण य अभिभूया दीसंति , एसा तइया निव्वेयणी ॥ इयाणिं चउत्था चूर्णी णिव्वेदणी, परलोए दुच्चिण्णा कम्मा परलोए चेव दुहविवागसंजुत्ता भवंति, कहं , जहा पुचि दुच्चिण्णेहिं कम्मेहिं ३ अध्ययने त जीवा संडासतुंडेहिं उप्पज्जंति, तओ ते नरयपाउग्गाणि कम्माणि असंपुण्णाणि ताए जातीए पूरेंति, पूरेऊण नरगभवे वेदेति, एसा चउत्थी णिव्वेदणी॥ एत्थं इहलोगो वा परलोगो वा पण्णवगं पडुच्च भवति, तत्थे पण्णवगस्स मणुस्सभवो इहलोगो, अवसेसाओ ॥१०॥ तिण्णि पगडीओ परलोगो, एताए निव्वेयणीए कहाए इमा रसगाहा- 'पावाणं कम्माणं' गाहा (२०३-११०) पढियव्वा, चउण्हं कहाणं कस्स का पढमं कहेयब्बा?, एत्थ भण्णइ-वेणइय णइगस्स कहा, वेयणियगो नाम जो पढमताए उवट्ठाइ ममं धम्मं कहेह, तस्स अक्खेवणी कहेयव्वा, तो ससमयगहियस्स पच्छा विक्खेवणी कहिज्जइ, किं कारणं ?, जम्हा अक्खवणीए जीवा अक्खित्ता समाणा सम्मत्तं लभेज्जा, विक्खेवणीए पुण भयणिज्जा, गाढतरागं च मिच्छत्तं भवइ, कहं १, जो आगाढमिच्छदिट्ठी तस्स ससमयो वणिज्जतो रोयइ, गाढावगयत्तणण पुण तस्स दोसा कहिज्जमाणा ण रोयंति, ण य सद्दहइ, सुहुमत्तणेण य दोसे अबुज्झमाणो अदोसे चेव मण्णज्जा, इच्चेएण कारणेण भणति जहा गाढतराग मिच्छंति, धम्मकहा सम्मत्ता ॥ इयाणि मीसिया कहा भण्णइ-'लोइयवेइय' गाहा (२०८-११४) लोइयवेइयसामइएसु सत्थेसु जहिं धम्मत्थकामा तिण्णिवि कहिज्जति सा मीसिया कहा, तत्थ लोइएसु जहा भारहरामायणादिसु वेदिगेसु जन्नकिरियादीसु सामइगेसु तरंगवइगाइसु। धम्मत्थकामसहिताओ कहाओ कहिज्जंति, मीसिया कहा संमत्ता ॥ इदाणिं कहापसंगेण चेव चिकहा भष्णइ- जहा विणट्ठ कहेयवा?, एत्थ भण्णइ-वेणा तगाहा- 'पावाणं कम्माण गास्सभवो इहलोगो, अवसेसाओ, ॥१०॥ mer m
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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