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________________ धर्मकथा चूणों श्रीदश- एवं चेव, णवरं पुब्धि सोभणे कहेइ पच्छा इयरेत्ति, एवं विखेवणी गया ॥ इयाणि इहलोगसंवेयणी, जहा सबमेव | वकालिक माणुसत्तण असारमधुवं कदलीथंभसमाणं एरिसं कहं कहेमाणो धम्मकही सोतारस्स संवेगमुप्पाएइ,इहलोगसंवेयणीगता। इदाणिं | परलोगसंवेदणी,जहा इस्साविसादमदकोहमाणलोभादिएहिं दोसेहि। देवावि समभिभूया,तेसुवि कत्तो सुहं अत्थि॥१॥इट्ठ जणविप्प३ अध्ययने ५ ओगो चेव चयं चेव देवलोगाउएतारिसा णिसग्गे देवावि दुहाणि पावंति॥१॥जइ देवेसु एयारिसाई दुक्खाई पाविज्जति नरगतिरिएसु पुण ॥१०॥ | का कहा?, एसा परलोगसंवेदणी कहा गया॥इदाणिं सुभाण कम्माण विवागदरिसावणेणं संवेग सोयारस्स उप्पाएइ, जह इह-ल लोएवि तेयाइओ लद्धीओ भवंति सुभेसु कम्मेसु वट्टमाणस्स,तं. 'वीरिय विउवण'गाहा(२०२-११०)तवोजुत्तस्स साहुणो आगास| गमणादीवीरियमुप्पज्जति जंघाचारणलद्धी विज्जाचारणलद्धी वा एवमादी, तहा विउव्वणलद्धीवि तवसामत्थेण भवति, णाणड्डी | इह लोए भवइ, भणिय च-'पभू भंते ! चोद्दसपुब्बी घडाओ घडमहस्सं विउवित्तए' एवमादी, तहा चरणद्धीवि जहा 'जं अन्नाणी | कम्म खवेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उस्सासमेत्तण ॥ १॥ दसणिद्धी जहा-'सम्मद्दिट्ठी जीवो विमाणवजन बंधए आउं| जइ य न सम्मत्तजढो अहव न बद्धाउओ पुचि ॥१॥ एवमादीयाओ कहाओ कहेंतो संवेगणि कह कहेतित्ति,संवेगणी कहा गया । इदाणि णिव्वेयणी, सा चउविहा-त-इहलोए दचिण्णा कम्मा इहलोए दुहविवागसंजुत्ता भवंति, चउभंगी, इह लोए दुच्चिण्णा कम्मा इहलोए दुहविवागसंजुत्ता भवंति ?, जहा चोराणं परदारियाणं, एवमाई, एसा पढमा निव्वेदणी गता।। इदाणिं वितिया णिब्वेदणी, इहलोए दच्चिण्णा कम्मा परलोए दुहविवागसंजुत्ता भवंति, जहा & रइयाणं अण्णंमि कयं कम्म निरयभवे फलं देइ, एसा वितिया निव्वेग्रणीकहा, इयाणिं तइया णिब्वेदणी कहा--परलोगे। 12* ॥१०८॥ 25%AX
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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