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________________ श्री केवलज्ञान दशेनोप नन्दीचूणो ॥ २१॥ योग वादः सस *णाणदसणेहिं जाणति पासह य, इत्थ केवलणाणदसणोवयोगहि बहुया समयसभावं आयबुद्धीए पकप्पिता इमं भणति केई भणंति जुगवं जाणइ पासइ य केवली णियमा । अण्णे एंगतरियं इच्छंति सुतोवदेसणं ॥ १ ॥ अण्णे ण चेव वीसुं दसणमिच्छति लाजिणवरिंदस्स । चिय केवलणाणं तं चिय से दसणं वेति ॥२॥ तत्थ जे ते भगति जगवं जाणइ पासइ य ते इमं उववत्तिं उवदिसति 'जं केवलाइ सादी अपज्जवसिताई दोवि भणिताई। ता बैंति केइ जुगवं जाणइ पासइस सव्वष्णू ॥शा इधराऽऽईणिहणत्ता मिकछावरणक्खओत्ति व जिणस्स । इयरेतरावरणता अथवा णिकारणावरणं ॥ ४ ॥ तध य असवण्णुत्तं असव्वदरिसत्तणप्पसंगो य । एगंतरोवयोगे जिणस्स दोसा बहुविधीता ॥ ५ ॥ एवं बहुधा भणित आगमवादी उत्तरं इमं आह-भण्णति भिण्णमुहत्तोवयोगकालेवि तो तिणाणि स । मिच्छा छावट्ठीसागरोवमाइं खयोवसमो ॥६॥ जधा छउमत्थस्स मतिसुतावधिणाणेसु अंतमुहुत्तो कालोवयोगसंभवो उवयेोगाणु| वयोगेण य ( छा ) बट्ठी सागरा से ठितिकालो दिट्ठो तथा जति जिणस्स णाणदसणासादिअपज्जवसाणा उवयोगाणु वयोगेण भवति तो को दोसो ?, जति एवं ते णाणुमयं तो इमं ते कथं अणुमतं भविस्सति ?, 'अथ णवि एवं तो सुण जहेव खीणतराइओ | अरहा । संतेऽवि अंतरायक्खयंमि पंचप्पगारम्मि ॥७॥ सततं ण देइ लभइ व मुंजइ उवमुंजई व सव्वण्णू । कमि देइ लभइ व मुंजति |व तथैव इहयपि ॥ ८॥ तस्स लभंतस्स व उवभुंजतस्स ब जिणस्स एस गुणो। खाणंतराइययत्ते जं से विग्धं ण संभवति ॥ ९ ॥ उवउत्तरसेमेव य णाणमि व दंसणंमि व जिणस्स । खीणावरणगुणोऽयं जं कासिणं मुणइ पासइवा ॥१०॥ पुणो पर आह-पासंतोऽविण | जाणति जाणव न पासती जति जिजिंदो । एवं न कयाइवि सो सव्वण्णू सव्वदरिसी य॥ ११ ।। अत्रोत्तरं आचार्य आह-जुगवमजाणंतोबिहु | चतुहिवि णाणेहिं जह व चतुणाणी । भण्णइ तथैव अरहा सम्वण्णू सव्वदरिसी य ॥ १२ ॥ पर एवाह-'तुल्ल उभयावरणक्खयमि पुव्वयर CCCCCCCCARMA GK-CLAK- ॥२१॥
SR No.600286
Book TitleNandisutrasya Churni
Original Sutra AuthorRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1928
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size19 MB
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