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नन्दी
याग्या:
हारिभद्रीय वृत्ती
॥२२॥
| तत्थ विठ्ठो सुमरिंसु सरामिणेदाणि ॥९॥ एगेण विसइ बीएण णीइ कण्णण चालणी आह । धनत्य आह सेलो जे पविसति नीति वा तुझं ॥१०॥ तावसखउरकिढिपायं चालणिपडिवक्खि ण संदइ दवपि । परिपूर्णमम्मि य गुणा गलंति दोसा य चिटुंति ॥११॥ सव्वन्नुप्पाममा दोसा हु न संति जिणमते केई। जं अणुवउत्तकहर्ण अपत्तमासज्ज व हविज्ज ॥ १२॥ अंबतणेण जीहाए कूचिया होइ खीरमुदगम्मि । हंसो मोत्तूण जलं आवियइ पयं तह सुसीसो ॥ १३ ॥ सयमवि न पियइ महिसो ण य जूहं पियइ लोलियं उदगं । विग्गहविकहाहि तहा अथकपुच्छाहि य कुसीसो ॥ १४ ॥ अवि गोपयंमिवि पिए सुढिओ तणुयत्सणेण तोंडस्स । न करेइ कलुसतोयं मेसो एवं सुसीसोवि ॥ १५॥ मसउव्व तुदं जच्चादिएहिं निच्छुब्भए कुसीसो उ । जलुगा व अद्मितो पियइ सुसीसोवि सुयणाणं ॥ १६॥ छडेउं भूमीए खीरं जह पियइ दुट्ठमज्जारी । परिसुट्टियाण पासे सिक्खड़ एवं विणयभंसी ॥ १७ ॥ पाउं थोवं थोवं खीरं पासाइं जाहओ लिहइ । एमेव जियं काउं पुच्छइ मइमं न खिज्जेइ ।। १८ ।। अण्णो दोज्झिहि कल्लं णिरत्थयं किं वहामि से चारि । चउचरणगवी उ मता अवन्न हाणी य बडुगाण ॥ १९ ॥ मा मे होज्ज अवण्णो गोवज्झा मा पुणो व न दलिज्जा । वयमवि दोज्झामो पुणो अणुग्गहो अबढेऽवि ॥ २० ॥ सीसा पडिच्छगाणं भरोत्ति तेऽवि हु सीस गभराोत्त । ण करेंति सुत्तहाणी अनत्थवि दुल्लभ तेसिं ॥ २१॥ कोमुदिया तह संगामिया य उम्भूतिगा उ तिनि भेरीओ। कण्हस्सासी उ (ण्हु) तया असिवोवसमी चउत्थी उ ॥ २२ ॥ सकपसंसा गुणगाहि केसवा मिवंद सुणदन्ता । आसरयणस्स हरणं कुमार भंग य पुयजुझं ॥ २३ ॥णेहि जिओमित्ति अहं असिवोवसमीइ संपयाणं च । छम्मासिय घोसणया पसमइ ण य| जायए अण्णो ॥ २४ । आगंतु वाधिखोमे महिडि मोल्लेण कंथ दंडणता । अट्ठमआराहण अअमेरि अनस्स ठवणं च ॥ २५ ॥
२२॥