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________________ श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥२६॥ | अहवा संका विसोचिया, किं आउकाओ जीवो ण जीवोत्ति १, खं तिण्णो कई बद्धमाणपरिणामीण भणियब्वो', भण्णइ- अप्काया 'पणता वीरा महाविहिं' (२१-४३) मिसं णता पणता अमिमुहीहुया मोक्खस्स वीथी-रत्था वा मग्गो वा एगट्ठा, दवे अंतरावणविही गोविही सुंकविही, भावविही महती पवणा वा वीथी महावीथी, मोक्खमग्गस्स, जतिवि कहंचि पमायखलितेण |ण वडमाणपरिणामो भवति तहावि लहु पडिबुज्झित्ता पुणरवि तिब्बतरपरिणामो भवति, किंच 'लोयं वा आणाए अ| भिसमिचा' (२२-४४) लोयंति जीवलोयं आउलोयं वा, आणाए भगवतो उबदेसो, जेवि पचक्खनाणिणो तेहिंवि पुर्व आणाए अधिगता, अभिमुहं पच्छा अभिसमेजा, अहवा दिटुंतेहिं कहिजमाणमवि आउक्कायलोगं एगिदियलोगं वा कोई मंदबुद्धी ण सद्दहति तं पडुच्च इमं भण्णइ-'लोयं वा आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं तिण कुतोऽवि जस्स भयं तं अकुओभयं, अहवा ण | कयाइवि भयं करेइ आउकायस्स, तस्य भयं दुक्खं असातं मरणं असंति अणत्थाणमिति एगट्ठा, जओ एवं तेण भण्णइ 'से बेमि | णेव सयं लोयं' अब्भाइक्खिज, ण इति प्रतिवेधे सयं अन्भाइक्खा जहा एगिदिया अजीवा, अत्ताणं जो अन्नं वा संतं अन्नहा भणति जहा साहुं असाहुंति एवमादि, एवं जो ऐगिदिए जीवे उवगरणदु(पडु)प्पायं भगति तेण अब्भक्खातं भवति, अहवाऽऽउलोगो अविकितो 'त'ति विजहाए ण अन्भाइक्खति, नेव सयं अचाणं अन्भाइक्खेजा, अलातचक्कदिटुंतादीहिं अप्पाणं अम्भाइक्खइ जहा अहमवि नत्थि तेण छज्जीवकायलोगो अप्पा य ण अत्थीति वत्तवं, इमं अनं गइरागइलक्खणं 'जो एगिदियकायलोयं अब्भक्खाइ सो अप्पाणं अन्भाइक्खइ, जस्स एगैदियलोगो णस्थि तस्स अपावि णत्यि, जो वा अधिकियं आउलोगं अब्भाइक्ख सो अप्पाणं अभक्खाइ, कहं , तस्स अप्पा अणंतसो तत्थ उववन्न पुग्यो, यदि सो णत्थि अप्पावि णस्थि, के पुणIMIM २६॥
SR No.600285
Book TitleAcharang Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1941
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size9 MB
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