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कामविष
श्रीआचारांग सूत्र
चूर्णिः ॥२४२॥
ण्णादि
संगिणो, गंथे पढिता णरा कतरे, ते जेहिं ण णियगादि पंचवि धुया, अप्पाणं वापंच गाहितो, तेहि य अचिट्ठिते हिते रागदोसादिएहिं गढिता बद्धा नरा विसन्ना कामविप्पिता विविहं सन्ना विसण्णा, दव्वे पंकादिविसण्णा भारवाहपरिया वा, भावसना नियगा पंच, एयाए दुविहाए कामविप्पिता, विग्घितनि विप्पितत्ति वा एगट्ठा, दव्वे खंभादिविप्पिता दुरुद्धरा भवंति, भावे दुविहकामआसत्तचित्ता, सयणधणादिणा मुच्छिता वा कामा, जेहिं वा सारीरमाणसेहिं वा दुक्खादी, माणसेहिं इह विप्पिता परलोएवि बहूहि डंडणेहि य जाब पियविप्पओगेहि य विप्पिञ्जिस्संति, जंसि इमे लूसिणो णो परिवित्तसंति जंसि जत्थ, इमे इति जे वुत्ता गंथेहिं गढिता नरा, अहवा इमे मिच्छादिट्ठी असंजतमणुस्सा, लूसंतीति लूसगा, पंचगस्स वा लूसगा भंजगा विहारगा एगट्ठा, णो परिवित्तसंति-णो उब्वियंति, णो वीभेति, लूमगत्ता ण परिवित्तसंति, तदुवचियस्स वा कम्मस्स नरगादिभयस्स वा, तहा गंधाओ कामे हितो, पढिजह य-तम्हा लूहाओणो परिवित्तसिज्जा जम्हा गंथेहिं गढिता णरा विसना इह परत्थ य दुक्खेहिं च विपिजंति तम्हा तुम लूहातो णो परिवित्तसिज, दव्वे जं नेहविरहितं दव्यं तं लूह, भावे रागादिरहितो धम्मो, तत्थ रुक्खत्ता |ण कसादि वज्झति, भावरुक्खत्थं दव्वरुक्खाओ ण वित्तसे, भणियं च-अतिणिद्वेण चलिजंति कतोसो लहाओ ण परिवित्तसेत्ति ?, णणु जस्सिमे आरंभासवओसुपरिणाता भवंति, जस्सेति जस्स साहुस्स, कतरे आरंभाः पुढविकाइआरंभा आउक्काइयारंभातेउकाइयारंभा वाउकाइयारंभा वणस्सकाइयारंभा जाव तसकाइयारंभा, जह सत्थपरिणाए एकेकस्स बहवे आरंभा भणिता | तंजहा उवभोगे य सत्थे य, अहवा णामादिआरंभा, णामठवणाओ गयाओ, दव्वे कायारंभो, भावे 'रागादीया तिण्णि 'गाहा, सब्बतो इति खि गहियं, गामे वा जाव सब्बलोए, सब्बता इति सब्वअप्पत्तेण, भावे गहिते कालोवि तत्थेव, जाणणापरिणाए
ANNEL
॥२४२॥