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________________ श्रीभाषागंग भूत्र चूणिः लज्जा शुचिवोधः २ उद्देश: ममुरादाणं ग्रहमा लञ्जमाणी जहमति पवा भुजति एवमादीहि, वाणियओ या अलद्धलामओ घरं पविसंतो लजति, लोउत्तरे संजम एव लजा, भागयं च - "लजा दया संजमो बंभ" असंजम कार्ड लज्जति, पुढो णाम पत्तेयं २, पास पञ्चक्खाणा वा || पुढवि ममारभंता लज्जति. अहया ते लज्जमाणे पासादि, कुतिथिप पुण लग्जणिज्जेवि विणिहयामा अटिए परिजुण्णे दुस्संबोधे अधियाणए पनेयं २ करिमणाहागीकारणहि कलियकोदालादीहि सत्यहि समारभंति, 'अणगारनि अगा-रुक्खा तेहिं कयं अगारं, अगार से त्थि नेण अणगारा, दब्वे चरगादि, भावे अणगारा माहू ने सीलंगमहम्मरकखणट्ठा पुढविण समारभंति, इतरे पुण निणि निसट्टा पावाइयमया 'पवदंति य अणगारा' गाहा ( ५".- ) लोपण अंणगारा भण्णमाणा, भण्णंती-पूयासक्कारह पुण पवयंति 'अणगारवादियो पुटविहि' गाहा (१०८.३३ ) मलिणनर अप्पाणं करेंति, पुढविसमारंभविरए दुगुंछमाणा, जहा मलिणं वन्थं कदमोदएण धुबमाणं, एवं ने व दृ तिनं चेव करेंति मइबोहो वा. जहा एककमि गामे सुइबोहो, तस्स गामम्म एगम्स गिहे केणती च्छिप्पति तो चउमट्टीए मट्टियादि म पहाति, अण्णदा यम्प गिहे बलबो मतो, कम्मास्वहिं गिवेडयं, नेण मणियं-संधि (मज्ज)नीणेघ. तं च ठाणं पाणिएणं धावट, निफडिए चंडाला उहिता विगिचियं कुज्ज, तेहि कम्मयरहिं मुइयवादी पुच्छिओ, चंडालाण दिज ?, तण वृष-मा, किंतु किंखु किंखु किंखुत्ति भणति, विकिंचतु मयं, एवमेव मंसं दामयगाणं देव, चम्मेण वइयाउ बलेह, सिंगाणि उच्छुबाडमो कीरहित्ति इज्झपि खत्तं भविस्सइ, अट्टिहिवि धूमो कन्जिहिति तउर्माण, हारुणा सन्थकंडाणं भविस्सइ, एवं तेषाव जहा परिश्चत्तं, एवं अतित्थियावि तं व दूसेंति तं चेव करेंति, दिसामीता पवझ्या न चेत्र करेंति हिंस, दगमोयरिया च उमट्टिए मट्टियाहिं मोयं करति, तव्यवियावि गामादिपरिग्महो, हलकु-! ॥ २१ ॥
SR No.600285
Book TitleAcharang Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1941
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size9 MB
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