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इदसाम्यं
श्रीआचारांग सूत्र
चूर्णिः ॥१८९॥
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लभ्य बेमि, तत्थ वतिरित्तो दव्वहरतो, परिगलणसोतो णाम एगो णो परियागलणसोतो पउमदहाति, परियागऊणसोतो णाम एगो णो परिगलणसोतो जहा लवणसमुद्दो, एगो परिगलणसोतोऽवि परियागलणसोतोऽवि जहा णीलवंतद्रहातिगंगाकुड एवमादि, एगो णो परिगलणसोतो णो परियागलणसोतो जहा बाहिरया समुद्दया सासयपुक्खरिणीओ वा, एवं सोतप्पवहे णाम एगे। नोसोयपडियच्छए, सोतप्पडियच्छे णामेगे णो सोतप्पवहे, एवं सेसावि भंगा, पडिपुण्णो णाम आईयाराइपुण्णो, जे वा हरयगुणा | तेहिं पडिपुण्णो, पसण्णतो यो जलएहिं उवसोभितो चिट्ठति 'समंसि भोमे चिहती ति णिच्चकालं सगुणेहि य पडिपुष्णो | चिट्ठति, ण कयाइ सुण्णो जलजेहिं, उवसोभितो अणुतीरतरूहि य पत्तपुष्फफलच्छायोवएहिं 'समभोमे' समे भूमीभागे, ण गिरि| सिहरे ण वा विसमे, सुहउयारउत्तारो य, ण सावएहिं सीहाइएहिं अनभिगम्मो, उवसंतरए अणेगपुरिसउवेहे, पसण्णपंको णिप्पंको | वा सैवालरहितो, एगे भणंति—पउमातिरहितोवि, तत्थ सुहं दिस्संति पंककंटाइणो जालाणिगला वा, यति आगासेण पक्खी गच्छति तस्सवि च्छाया दिस्सति, उवसंतरयत्ताओ य मच्छकच्छभे सारक्खति, ते ढंकादि जालगलातिए य दटुंण मअंति, तले वा लग्गति, सारक्खमाणो इस सारक्खमाणो, से चिट्ठति, ण सब्यो णिग्गलते, 'सोयमज्झि'त्ति ततियो हरतो जत्थ सोताणि आगलंति परिआगलंति य तम्हा ण खिजइ पेजमाणो य दुपयचउप्पदापदेहि विगेहि य, एस दिलुतो, अयं अत्थोवणओ-एवं सो गुरुकुलवासी आयरिओ जुत्तो पडिपुण्णो अढविहाए गणिसंपयाए, तत्थ पढमो सोतप्पवहो ण तु सोयपडिच्छतो तित्थगरो, वितियो जिणकप्पियो, ततिओ गणहराई, चउत्थो पत्तेयबुद्धो य, ततिएण अहिगारो, पडिपुण्णो सो य आयरियगुणेहिं चिट्ठति, माणा अवद्वितायारो जगं जगं समासज्ज पडिपुण्णो, समभोमेत्ति आयरियभूमीए माहुभाविते खित्ते पउरणपाणसुहविहारे सुह