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________________ श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥१३१॥ ट्ठिएहिं पसंसिञ्जइ, किं पसंसिआइत्ति अंधो सए पुरिसे पुच्छ, सो किं एसो साहुकारिजइत्ति, कहिते भण्णइ-तुज्झेऽवि मम लक्ख- | अनंधजयः देसे सई करेह, पच्छा सद्दवेधी जातो, जोव्वणत्यो य जातो, तं रायाणं परवलेण अभिभूतं जुद्धाय णिप्फिडंतं भणइ-मम बलं देह, अह णं परातिणामित्ति, दिण्णे बले चम्मियकवइतो लग्गो, तं च से बलं भग्गं, ताहे सो परबलेण वेढितो, तहावि जत्थ सई | सुणेइ तं तं विधति, रना पुच्छितं-को एस जुज्झति ?, जातिअंधो सद्देण विधइत्ति, मा सिट्ठिसई करेह, तुहिक्का अल्लियह, तेहिंवि तहेव कयं, गहिओ य, सो एवं वराओ 'कुणमाणोऽवि य किरिय'गाहा, ताहे सो सच्चक्खू वत्तं सोतुं पितरं आपुच्छित्ता तं परवलं पराजिणति, पच्छा रण्णो से तुद्वेण पट्टो बद्धो, एस दिद्रुतो, इमो अन्थोवणओ-'कुणमाणोऽवि णियत्ति' गाहा (२२०-१७८) जो जेसिं भणितो तंजहा पंच णियमा धुवगुणा वा, केसिंचि पंचग्गितावायावणादि, दुक्खस्स दिन्तावि उरं मिच्छादिट्ठी ण सिझंति, 'तम्हा कम्माणीयं जेतु' गाहा (२२१-१७८) सिद्धं, कह संमत्ते नाणचरित्ताई सफलाई ?, भण्णंति-सम्मत्तुप्पत्ती' गाहा (२२३-२२३) जहा दोन्नि मिच्छादिट्ठी पुरिसा आरामगते विहारगते वा साहू पासंति, के एतेत्ति एगो पुच्छइ, तेण वा अन्मेण वा धम्मं कहेंति, साहुणोति सिट्ठा, पुच्छिस्मामि णं धम्मं, ण ताव पुच्छति, सो इतरो असंखेजगुणनिजरतो, ततिओ इदाणि चेव पुच्छामि तस्स समीवं उबगच्छति, सो बितियाओ असंखेजगुणणिज्जरतो, चउत्थो पुच्छति, सो ततियातो असंखिजगुणनिजरओ, पंचमओ कहिए धम्मे संमत्तं पडिवाइ, चउत्थाओ असंखिज०,छट्ठो सम्मत्तं पडिवजमाणो पंचमाओ असं| खिजगुण०, सम्मत्तुप्पत्ती गता । इदाणिं मम्मदिट्ठीणो-तत्थ एगस्स चिंता विरताविरतिं पडिवामि सो इतराओ असंखिगुणणिजरओ, एवं दोनिवि संजता संता तत्थेगो संजमाभिमुहो अण्णो पडिवाइ, अन्नो पुचपडिवमओ, दोन्नि पुव्वपडिवत्रआ):१३१॥
SR No.600285
Book TitleAcharang Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1941
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size9 MB
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