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________________ आगमो दारककृति सम्दोहे ॥२२७॥ रिद्धिं । तं तुह अईयविसयं छट्टाई जइ वियाइदिणे ॥ ६२ ॥ तव उस्सग्गे चउतीसभत्तपज्जंतचितणं द । मन्नसु पञ्चक्खाणं छडाई पढमदिय ||६३ || सामायारिपवृत्तं पाणगसुतं विरोहमावहइ । न उ जं चउमासीए तयभिग्गहवं पढमदिहे ॥ ६४ ॥ पियइणुतत्तव पाणं किमजुत्तं परं परं सुद्धं । भत्तपञ्चक्रलाई अविय पियह पढमाओ || ६५ || पढमबि - इयाइ नुत्ता एगबिआई चउत्थछट्टाई | छम्मासियउस्सग्गे तमि भन्ने विसमणरो ||६६ || अइयस्स निंदणं संवरो य पडुपन्नकालिओ एस्स । होइ य पच्चक्खाणं कहमेगाइयदिणेऽईए || ६७॥ चाउमासिए य वरिसे छट्टमकरणमेगादियहमि । न वि चे पच्चक्खाणं दुगाइदिवसाण होइ समं ॥६८॥ छट्ठट्ठमाइभंगे पच्छित्तं पोव हुअ कइयावि । गामाभावे सीमा रुक्खाभावे य णो साहा ॥ ६९ ॥ किंचाभयदे वसूरी खरयरएहिं मओ स गच्छे। चात्थाईणं अत्थे चउत्थ छहं तु भत्ताणं ॥ ७० ॥ चायं वयंति पयडं सयंमि बिइयं मि पढमउदेसे । छाई पइण्णाए विणा ण छट्ठाइ अंतक्खा ॥ ७१ ॥ .इतिसिरिजय सोमसिक्खा ।। दुष्प्रतिकारविचारः (३६) गर्भस्थिता यो जननीकृपायै, निरेजनोऽस्थात् क्षणमाप्त बोधः (करणं निगुह्य ) । मातु ( पितुः ) विषादे कृतवान्प्रतिज्ञांगृहोषणे वीरविभुर्य जे( यात्) तम् ॥१॥ इष्टं समैः सुखं पूर्ण, दुःखलेशाकलङ्कितं । गतेच्छं तन्न निर्वाणादन्यत्रेत्यनुवन् जिन्ाः ॥२॥ निर्वृतिवैक्रियाङ्गे न नौदारिकमयोनिजं । न सम्मूच्छेनजं चालम्भविष्णु मोक्षसाधने ॥ ३॥ ऋते मातुर्गर्मजानां जनिर्जातु न जायते । नाजातस्य भवाध्वाप्तिस्तां विनापवृणक्ति कः ॥४॥ यद्यपीह भवे पूर्वे, मानुष्यं | दुष्प्रतिकारविचार: ॥२२७॥
SR No.600283
Book TitleAgamoddharak Kruti Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorManikyasagarsuri
Author
PublisherShantichandra C Zaveri
Publication Year1960
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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