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से भिक्खू वा० से जं० ससागारियं सागणियं सउदयं नो पन्नस्स निक्खमणपवेसाए जावऽणुचिंताए तहपगारे उवस्सए नो ठा० ॥ ( सू० ९१ )
स. भिक्षुर्य पुनरेवंभूतं प्रतिश्रयं जानीयात् तद्यथा - ससागारिकं साग्निकं सोदकं तत्र स्वाध्यायादिकृते स्थानादि न विधेयमिति ॥ तथा
से मिक्खू वा० से जं० गाहावइकुलस्स मज्झंमज्झणं गंतुं पंथए पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव चिंताए तह उ० नो ठा० ॥ ( सू० ९२ )
यस्योपाश्रयस्य गृहस्थगृहमध्येन पन्थास्तत्र बह्वपायसम्भवात्तत्र न स्थातव्यमिति ॥ तथा
से भिक्खू वा० से जं०, इह खलु गाहावई वा० कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अक्कोसंति वा जाव उद्दवंति वा नो पन्नस्स०, सेवं नच्चा तहप्पगारे उ० नो ठा० ॥ ( सू० ९३५ से भिक्खू वा० से जं पुण० इह खलु गाहावई वा कम्मअरीओ वा अन्नमन्नस्स गायं तिल्लेण वा नव० घ० वसाए वा अब्भंगेति वा मक्खेति वा नो पण्णस्स जाव तहप्प उव० नो ठा० ( सू० ९४ ) से भिक्खू वा० से जं पुण० – इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ अन्नमन्नस्स गायं सिणाणेण वा क० लु० चु० प० आघंसंति वा पघंसंति वा उब्वलंति वा उव्वहिंति वा नो पन्नस्स० (सू० ९५ ) से भिक्खू० से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, इह खलु गाहावती वा जाव कम्मकरी वा अण्णमण्णस्स गायं सीओदग० उसिणो० उच्छो० पहोयंति सिंचंति सिणावंति वा नो पन्नस्स जाव नो ठाणं ॥ ( सू० ९६ )