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उपासकदशांग सानुवाद
२ कामदेवाध्ययन
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छे, 'अगरलाए' स्पष्ट वर्णवाळी, 'अमम्मणाए' बच्चे अटक्या सिवाय अस्खलित बोलाती, 'सव्यक्वरसन्निवाइयाए' सर्व अक्षरना संयोगवाळी, 'पुण्णरत्ताप' परिपूर्ण मधुर, 'सबभासाणुगामिणीप' सर्व भाषारूपे परिणमनस्वभाववाळी, 'सरस्सइए' सरस्वती-बाणीवडे जोयणनीहारिणा सरेणं' योजनगामी शब्द बडे 'अद्धमागहाए भासाए भासइ अरहा धम्म परिकहर' अर्ध मागधी भाषा, के जेमा 'र' नो ल अने 'स' नो श थाय छे इत्यादि मागधी भाषानु लक्षण संपूर्ण नथी, ते मागधी भाषा बडे 'अरहा-अईन-पूजाने योग्य अथवा अरहस्य-जेने कांई पण रहस्य-छार्नु नथी, कारण के ते सर्वज्ञ छे, पवा भगवान् श्रद्धा करवा योग्य, जाणवा योग्य अने आचरवा योग्य वस्तुने विशे श्रद्धान, शान अने आचरणरूप धर्मने 'परिकथयति' समस्तपणे, समग्र विशेषने कथन करवा पूर्वक कहे छे. तथा 'सब्वेसि आरियमणारियाण अगिलाए धम्ममाइक्खइ' केवळ ऋषिपरिषदादिने धर्म कहे छे पम नहि, परन्तु जे वंदनादि माटे आवेला ते बधा आर्य-आर्यदेशमा उत्पन्न थयेलाने अने अनार्य-म्लेच्छोने अग्लानि-खेद पाम्या सिवाय धर्म कहे छे.
हवे धर्मकथानु स्वरूप बतावे छे-'अस्थि लोए, अस्थि अलोए' लोक छ, अलोक छे. प प्रमाणे जीव, अजीव, बंध, मोक्ष, पुण्य, पाप, आम्रव, संवर, वेदना अने निर्जरा छे.प पदार्थोनुं अस्तित्व बताववा वडे शून्यवादी, विज्ञानवादी, निरात्मवादी, अद्वैतवादी, एकान्त क्षणिकवादी, नित्यवादी अने नास्तिकादि कुदर्शनोनो निषध करवाथी परिणामी वस्तुनुं प्रतिपादन द्वारा सर्व आ लोक अने परलोकनी क्रियाओगें निदाषपणुं बताव्यु. तथा अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, नरक, नारको, तियचो, तिर्यंचखीओ, माता, पिता, ऋषिओ, देवो, देवलोको, सिद्धि, सिद्धो, परिनिर्वाण अने परिनिर्वृत-निर्वाणने प्राप्त थयेला जीयो छे. सिद्धि-कृता र्थता अने परिनिर्वाण-सर्व कर्म बडे करायेला विकारना अभावथी अतिशय स्वस्थता, ए प्रमाणे सिद्ध अने परिनिर्वृत-निर्वाणने प्राप्त थयेलानो मेद जाणवो. तथा प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम-राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान (खोटुं आळ मूकबु), पैशुन्य, अरतिरति, परपरिवाद-निंदा, मायामृषावाद अने मिथ्यादर्शनशल्य छे. प्राणातिपातविरमण, यावत् क्रोधविवेक-क्रोधनो त्याग यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेक छे. अधिक कहेबाथी शुं? परन्तु सर्व