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________________ उपासक २ कामदे. बाध्ययन दशांग सानुवाद ॥८६॥ ॥८६॥ णाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा। तए णं अहं सक्कस्स देविन्दस्स देवरणो एयमहूँ | असद्दहमाणे ३ इहं हव्वमागए, 'तं अहो णं देवाणुप्पिया ! इड्डी ६ लद्धा ३, तं दिट्ठा णं देवाणुप्पिया! इड्डी जाव | अभिसमन्नागया, तं खामेमि णं देवाणुप्पिया! खमन्तु मज्झ देवाणुप्पिया! खन्तुमरहन्ति णं देवाणुप्पिया! नाई पमाडवाने के विपरिणाम करवाने शक्य नथी. त्यार बाद हुं देवेन्द्र देवराज शक्रनी ए वातनी श्रद्धा नहि करतो शीघ्र अहीं आव्यो. अहो ! देवानुप्रिय ! तें ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषकारपराक्रम प्राप्त करेलुं छे. हे देवानुप्रिय ! ऋद्धि में प्रत्यक्ष जोइ, यावद् में सारी रीते जाणी. हे देवानुप्रिय! हुं खमाबु छु, हे देवानुप्रिय! तमे मने क्षमा आपो, हे देवानुप्रिय ! तमे क्षमा आपवाने योग्य छो, नार, 'आलइयमालमउडे' आलगित-आरोपेली छे माला जेने विशे पवा मुकुटवाळो, 'नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे' नवा अने हेम-सुवर्णना चारु-सुशोभित, चित्र-चित्रवाळा चंचल कुंडलो बडे विलिख्यमान-स्पर्श कराता गंड-गाल जेना छे एवो, 'भासुरबोंदी भासुर-देदीप्यमान बौदि-शरीर जेनुं छे एवो, 'पलंबवणमालधरे' प्रलंब-लांबी बनमालाने धारण करनार पवो (इन्द्र) सौधर्म कल्पमां सौधर्मावतंसक विमानने विशे सुधर्मा सभामा 'चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं' चोराशी हजार सामानिक देवो, अझै यावत् शब्द कहेवाथी तेत्रीश त्रायखिश देवो, चार लोकपाल, परिवार सहित आठ अग्रमहिषीओ, त्रण पर्षदो, सात प्रकारना अनीक-सैन्यना देवो, सात अनीकाधिपति-सैन्यना अधिपति अने चारगुणा चोराशी हजार आत्मरक्षक देवोना मध्यमां रही, तेमां त्रायस्त्रिंश-पूज्य गुरुस्थानीय देवो, चार लोकपाल पूर्वादि दिशाना अधिपति सोम, यम, वरुण अने कुबेर, आठ अग्रमहिषी-पट्टराणी, तेनो प्रत्येकनो परिवार पांच हजार देवीओ, बधी मळी परिवार रूप देवीओ चाळीश हजार जाणवी. अभ्यन्तर, मध्यम अने वाह्य त्रण पर्षद जाणवी. पदातिपायदळ, गज, अश्व, रथ अने वृषभ-ए भेद पांच प्रकारचं संग्रामने उपयोगी सैन्य अने गन्धर्वानीक-संगीत करनार, अने नाटयानीक S*X4
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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