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उपासकदशांग सानुवाद
२ कामदे| वाध्ययन
॥७७॥
॥७७॥
सुजायं पुरओ उदग्गं पिट्ठओ वाराहं अयाकुच्छि अलम्बकुच्छि पलम्बलम्बोदराधरकर अब्भुागयमउलमल्लियाविमलधवलदन्तं कञ्चणकोसीपविट्ठदन्तं आणामियचावललियसंविल्लियग्गसोण्डं कुम्मपडिपुण्णचलणवीसइनक्वं अल्लीणपमाणजुत्तपुच्छं मत्तं मेहमिव गुलगुलेन्तं मणपवणजइणवेगं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ। विउवित्ता जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं नथी एवं, लम्बोदर-गणेशनी पेठे लांबा होठ अने कर-सुंढ जेनी छे एवू, मुकुलावस्थाने प्राप्त थयेला मल्लिका-मोगरानी पेठे विमलस्वच्छ अने धोळा दांत जेना छे एवं, कांचनकोशी-सुवर्णनी कोशी-खोळीमां प्रविष्ट छे दांत जेना एवं, आनामित-कंडक नमावेल चाप-धनुषनी पेठे ललित-चेष्टावाळी अने संवेल्लित-संकुचित थयेल सुंढनो अग्र भाग जेनो छे एवं, कूर्म काचबानी पेठे परिपूर्ण चरणो जेना छे एवं, वीशनखवाळु, आलीन-संगत अने प्रमाणयुक्त पुच्छ जेनुं छे एवं, मदोन्मत्त, मेघनी पेठे गर्जना करतुं, मन अने पवनने
जितनार वेग जेनो छे एवू दिव्य हाथीनुं रूप विकुर्वे छे. विकुर्वीने ज्यां पोषधशाला छे अने ज्यां कामदेव श्रमणोपासक छे त्यां| * आवे छे. आवीने कामदेव श्रमणोपासकने तेणे आ प्रमाणे कह्यु-हे कामदेव श्रमणोपासक ! इत्यादि तेमज कहे छे, यावत् शील वगे
लम्बोदर-गणपतिनी पेठे अधर-होठ, कर-सुंढ जेनी छे एq, 'अम्भुग्गय' अभ्युद्गत-प्राप्त करेली मुकुलावस्था जेणे एवो मल्लिका-मोगरो, तेनी पेठे विमल-स्वच्छ अने धोळा दांत जेना छे पq, 'काश्चनकोशीप्रविष्टदन्तम्' सुवर्णनी कोशी-खोली, तेमा प्रवेशेला दांत जेओना
छे पq, पटले तेना दांत उपर सुवर्णनी खोळी छे, कोशी-'प्रतिमा. आनामित-कंडक नमावेल चाप-धनुषनी पेठे ललित-विलास|| वाळी अने संवेल्लित-संकुचित थयेल छे सुंढनो अग्रभाग जेनो एवु, तथा कूर्म-काचबाना आकार जेवा प्रतिपूर्ण चरण जेना छे पर्बु,
१ अहीं प्रतिमानो अर्थ हाथीना दांत बांधवानुं आभूषण एवो धाय छे. “प्रतिमा प्रतिरूपके गजस्य दन्तबन्धे च"-अनेकार्थत्रिस्वरकांड श्लो, ४६३.