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________________ उपासकदशांग सानुवाद ॥७६॥ ४. तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ। पासित्ता जाहे नो N२ कामदे संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे वाध्ययन सन्ते तन्ते परितन्ते सणियं सणियं पच्चोसक्कड़, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एग महं दिव्वं हथिएवं विउव्वइ, सत्तङ्गपइट्टियं सम्म संठियं ॥७६॥ | ४ त्यार बाद ते पिशाच रूप देव कामदेव श्रमणोपासकने निर्भय रहेलो जुए छ. जोइने ज्यारे ते कामदेव श्रमणोपासकने निम्रन्थ प्रवचनथी चलायमान करवाने, क्षोभ पमाडवाने, विपरिणाम-अन्यथा परिणाम करवाने शक्तिमान् थतो नथी त्यारे श्रान्त थयेलो थाकेलो अत्यंत थाकेलो धीमे धीमे पाछो फरे छे, पाछो फरी पोषधशालाथी बहार नीकळे छे. बहार नीकळीने दिव्य पिशाच रूपनो त्याग करे छे. त्याग करीने एक मोटुं दिव्य हाथीनुं रूप विकुर्वे छे. जेना सात अंग भूमिने लागेलांछे एवं, सम्यक् संस्थित-आकृति वाळु, सुजात-पूरा दिवसे जन्मेलं, आगळथी उंचु अने पाछळथी वराहना जेवू, अजाना जेवा पेटवालं, अलम्बकुक्षि-जेनुं पेट लांबु चलन बे प्रकारे छे-संशयद्वारा अने विपर्यास द्वारा. तेमा संशयथी क्षोभ पमाडयाने अने विपर्यासथी विपरिणाम करवाने. ४ 'सन्ते' श्रान्त वगेरे शब्दो समानार्थक छे. 'सत्तङ्गपइट्ठियं' चार पग, कर-सुंढ, पुच्छ अने पुरुषचिन्ह, ए सात अङ्गो प्रतिष्ठित-भूमिने विशे लागेलां जेना छे एg, सम्म-मांसनी गुद्धि थवाथी सारी रीते, संस्थित-हाथीना लक्षण सहित अङ्गोपांग होवाथो सारा आकारवाळु, 'सुजात' सुजातना जेवू, एटले पूरा दिवसे जन्मेलु, 'पुरओ' आगळ, उदग्रं-उंचं जेनुं माथु छे पq, 'पृष्ठतः' पृष्ठ भागमा वराहना जेवू, अहीं प्राकृत होवाथी नपुंसकलिंग छे. अजाना जेवू कुक्षि-पेट जेनु छे ते अजाकुनि, बळवान होवाथी, 'अलम्बकुक्षि' जेर्नु पेट लावु नथी एवं, 'प्रलम्बोदराधरकर' प्रलंब-लांबा XXXXXXX
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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