SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११. तए णं से आणन्दे समणोवासए उवासगपडिमाओ उवसम्पज्जित्ता णं विहरइ । पढम उवासगपडिम उपासक १ आनंदादशांग ११. त्यार पछी ते आनन्द श्रावक श्रावकनी प्रतिमाओ स्वीकार करीने बिहरे छे. तेमा प्रथम उपासक प्रतिमा-व्रत विशेषने सूत्र | ध्ययन सानुवाद ११. तेमां प्रथम अगियार श्रावकनी प्रतिमाओमाथी प्रथम श्रावकने उचित अभिग्रह विशेषरूप प्रथम प्रतिमानो स्वीकार करीने विहरे छे. ते प्रथम प्रतिमानुं आ स्वरूप छे-शंका वगेरे शल्य रहित सम्यग्दर्शन युक्त अने बाकीना गुण रहित जे प्राणी छे ते प्रथम | ॥५१॥ ॥५१॥ सम्यग्दर्शन प्रतिमा. निरतिचारपणे सम्यग्दर्शन- पालन करवू ते प्रथम प्रतिमा जाणवी, छतां अहीं गुण अने गुणीनो अभेद होवाथी सम्यग्दर्शन युक्त प्राणीने प्रथम सम्यग्दर्शन प्रतिमा कही छे. जो के सम्यग्दर्शननी प्रतिपत्ति (अंगीकार) तेने पूर्व पण हती, तो पण शंकादि दोष अने राजाभियोगादि अपवाद सिवाय तथाविध सम्यग्दर्शनाचारना विशेष पालन करवाना स्वीकार घडे प्रतिमानो संभव CO छे. पम न होय तो आनंद श्रावके प्रथम प्रतिमाने एक मास पालन करवा वडे, बीजी प्रतिमाने बे मास पालन करवा वडि, ए प्रमाणे | यावत् अगियारमी प्रतिमाने अगियार मास पालन करवा वडे साडा पांच वरस पूर्ण कर्या' ए अर्थात् कहेशे ते केम संगत थाय ? आ अर्थ दशाथुतस्कन्धादिने विशे नथी, कारण के त्यां श्रद्धामात्ररूप प्रथम प्रतिमानुं प्रतिपादन करेलुं छे. ते प्रथम प्रतिमाने 'अहासुतं' यथासूत्र-सूत्र प्रमाणे 'यथाकल्पं' प्रतिमाना आचारने उल्लंघन कर्या सिवाय, 'यथामार्ग क्षायोपशमिक भावरूप मार्गनो अतिकम कर्या मासिवाय, 'अहातच्च यथा तत्व-दर्शन प्रतिमाना अन्वर्थने अनुसरी, 'फासेई सम्यक प्रकारे काया बडे स्पर्श करे छे, कारण के प्रतिपत्ति समये तेने विधि बढे अंगिकार करी छे. 'पालेइ' निरन्तर उपयोगनी जागृति बडे रक्षण करे छे. 'सोहेई' शोभयति-गुरुपूजापूर्वक पारणा करवा बडे शोभावे छे. अथवा शोधयति-निरतिचार पणे शुद्ध करे छे. 'तीरेद' पूर्ण करे छे, काळनी मर्यादा पूर्ण थवा छतां तेना परिणामनो त्याग करतो नथी. 'कीर्तयति' वखाणे छे, कारण के तेनी समाप्तिमां आदि, मध्य अने अंतमां आ आ करवा योग्य हतुं ते में कयु छे एम स्तुति करे छे. आराधयति-ए बधा प्रकारो बडे निर्दोषपणे समाप्त करे छे. पछी 'दोच्च' Ipal. &&&XXXXEEEEEEEEEKE.
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy