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उपासकदशांग सानुवाद
१ आनंदाध्ययन
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'इत्तरियपरिग्गहियागमणे' 'इत्थरकालपरिगृहीतागमन-अहीं काळ शब्दनो लोप थयो छे. थोडा काळ सुधी ग्रहण करेली एटले
१ भाई आपवा बडे थोडा काळ माटे वेश्याने पोतानी स्त्री करीने गमन करनार पुरुषने पोतानी कल्पना बडे पोतानी स्त्री मानेली होवाथी व्रत सापेक्ष होवाने लीधे व्रतनो भंग थतो नथी अने अल्प काळ सुधी ग्रहण करेली होबाथी अने वास्तविक रीते पोतानी स्त्री नहि होवाथी व्रतनो भंग थाय छे माटे भंगाभंगरूप अतिचार छे. २ अपरिगृहीता-वेश्या, जेनो पति विदेशमा गयो छे एवी स्वच्छंदी खी अने धणी विनानी कुलांगना, तेनी साथे गमन करनार पुरुषने अनाभोगादि तथा अतिकमादि वंडे अतिचार लागे छे. आ बन्ने अतिचारो स्वदारसंतोषीने होय छे, पण परस्त्री त्यागीने होता नथी. कारण के थोडा काळ माटे भाई आपी ग्रहण करेली वेश्या होवाथी, अने ते सिवायनी बीजी कुलांगना वगेरे अनाथ होवाथी परस्त्री नथी. बाकीना अतिचारो स्वदारसंतोषी अने परस्त्रीत्यागी बन्नेने लागे छे, आ हरिभद्राचायनो मत छे अने ते आगमानुसारी छे. बीजा आचार्यों आ संबन्धे कहे छे के-इत्वरपरिगृहीतागमन ए स्वदार संतोषीने अतिचाररूप छे, अने अपरिगृहीतागमन ए परखीत्यागीने अतिचाररूप छे. कारण के ज्यारे वेश्याने कोइए भाई आपीने पोतानी रखात करेली होय अने तेनी साथे मैथुन गमन करे त्यारे परस्त्री गमनना दोषनी संभव होवाथी व्रतनो भंग थाय छे अने कोइ अपेक्षाए परस्त्री नहि होवाथी भंग थतो नथी माटे भगाभंगरूप अतिचार छे. अन्य आचार्य आ अतिचारनी पीजी रीते विचार करे छे-स्वदारसंतोषी में मैथुन मात्रनो त्याग कयों छे' एम समजी पोतानी कल्पनाथी वैश्या दकने विशे मैथुननो त्याग करे छे, पण आलिंगनादिनो त्याग करतो नथी, अने परस्त्रोत्यागी परस्त्रीने विशे मैथुननो त्याग करे छे पण आलिंगनादिनो त्याग करतो नथी माटे कथंचित् व्रतसापेक्ष होवाथी बने अतिचाररूप छे. ए प्रमाणे स्वदारसंतोषीने पांच अतिचार अने परस्त्रीत्यागीने त्रण अतिचार छे. बीजा आचार्यों अन्य प्रकारे अतिचारोनो विचार करे छे-परस्त्रीत्यागीने पांच अतिचार अने स्वदार संतोषीने त्रण अतिचार होय छे, कारण के कोइए भाई बगेरे आपीने राखेली वेश्यानी साथे मैथुन सेवनार परस्त्रीत्यागीने व्रतनो भंग थाय छे, कारण के ते थोडा काळ सुधी परस्त्री छ, परन्तु लोकमां परस्त्री तरीके प्रसिद्ध नथी माटे भंग थतो नथी तेथी भंग अने अभंगरूप अतिचार छे. अपरिगृहीता-अनाथ कुलांगना साथे मथुनसेवी परस्त्रीत्यागीने ते पण अतिचार छे, कारण के ते बीजा धणीना अभावे परस्त्री नथी, माटे भंग थतो नथी अने लोकमां परस्त्री तरीके प्रसिद्ध छे माटे व्रतनो भंग थाय छे माटे भंग अने अभंगरूप अतिचार छे. स्वदारसंतोषीने तो पूर्वोक्त वे अतिचार व्रतभंग रूप छे, बाकीना त्रण अतिचार स्वदारसंतोषी अने परस्त्रीत्यागी बन्नेने होय छे. स्त्रीने स्वपुरुषसंतोष अने परपुरुषत्यागमा भेद नथी,