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________________ ३ चुलनी उपासक दशांग सानुवाद पिताध्ययन ॥१०८॥ ॥१०८॥ णं तुमे विदरिसणे दिढे,तं गं तुम इयाणिं भग्गव्वए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि, तं णं तुमं पुत्ता! एयरस ठाणस्स आलोएहि, जाव पडिवजाहि । तए णं से चुलणीपिया समणोवासए अम्मगाए भद्दाए सत्थवाहीए तहत्ति एयमढें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवजइ। ८. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसम्पज्जित्ता णं विहरइ, पढमं उवासत्यार पछी चुलनीपिता श्रमणोपासक भद्रा सार्थवाही माताना ए अर्थने 'तह'त्ति कही विनय वडे स्वीकारे छे. स्वीकारीने ते स्थाननी आलोचना करे छ यावत् प्रायश्चित्तने स्वीकारे छे. ८. त्यार पछी चुलनीपिता श्रमणोपासक प्रथम उपासक प्रतिमाने स्वीकारी विहरे छे, प्रथम उपासक प्रतिमाने यथासूत्र सूत्र-प्रमाणे छे एवो, कारण के तेणे अव्यापार रूप पोषधनो भंग कयों छे. 'एयस्त' अहीं छट्ठी विभक्तिनो द्वितीया विभक्ति अर्थ होवाथी 'एतमर्थमालोचय' ए अर्थनी आलोचना कर एटले गुरुने निवेदन कर. यावत् शब्दना ग्रहणथो ‘पडिक्कमाहि' तेथी निवृत्त था, 'निंदाहि आत्मसाक्षीए निन्दा कर, 'गरिहाहि' गुरुनी साक्षीय निंदा कर. विउट्टाहि' वित्रोटय-ते भावना अनुबंधनो विच्छेद कर 'विसोहेहि अतिचार रूप मळने दूर करवा वडे विशुद्धि कर, 'अकरणयाए अन्भुटेहि फरीथो नहि करवानो स्वीकार कर. 'अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जाहि' यथायोग्य तपकर्म रूप प्रायश्चित्तनो अंगीकार कर. प बडे 'निशीथादि सूत्रोमां गृहस्थने प्रायश्चित्त कहां नथी माटे गृहस्थने प्रायश्चित्त होतुं नथी' एम कोई माने छे तेनो मत दर कर्यों छे. साधुने उद्देशी कंड पण करे तो गृहस्थने प्रायश्चित्त जित व्यवहारने अनुसरीने होय छे. उपासकदशाना तृतीय अध्ययननो टीकानुवाद समाप्त. .
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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