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________________ व ॥२५७॥ कुमारकोडीओ संबपामोक्खाओ सट्ठि दुइंत-साहस्सीओ वीरसेण-पामुक्खाओ इक्कवीसं वीरपुरिस-साहस्सीओ महसेण-पामोक्खाओ छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ अन्ने य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ- सिट्ठि-सेणावइ- सत्थवाह-पभिइओ करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेहि २ एवं वयाहि-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए चुल्लणीए देवीए अत्तयाए धट्ठज्जुणकुमारस्स भगिणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ, तं णं तुब्भे देवाणुप्पिया! दुवयं रायं अणुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह, तए णं से दूए करयल जाव कट्ट दुवयस्स रण्णो एयमटुं पडिसुणेति २ जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ २ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह जाव उवट्ठवेंति १ ।। तए णं से दूए ण्हाते जाव अलंकार विभूसिए सरीरे चाउग्घंट आसरहं दुरुहइ २ बहूहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध जाव गहियाऽऽउहपहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे कंपिल्लपुरं नगरं मझमझेणं निग्गच्छति, पंचालजणवयस्स मज्झमझेणं जेणेव देसप्यते तेणेव उवागच्छइ, सुरट्ठाजणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव बारवती नगरी तेणेव उवागच्छइ २ बारवई नगरिं मझमझेणं अणुपविसइ २ जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता चाउग्घंटे आसरहं ठवेइ २ रहाओ पच्चोरुहति २ मणुस्स-वग्गुरा-परिक्खित्ते पायचार-विहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छति २ कण्हं वासुदेवं समुद्दविजय-पामुक्खे य दस दसारे जाव बलवग-साहस्सीओ करयल तं चेव जाव समोसरह । तते णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ठ जाव हियए तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ २ पडिविसज्जेइ२ । तएणं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसं सद्दावेइ २ एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि, तएणं से कोडुंबियपुरिसे करयल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयमटुं पडिसुणेति २ जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ २ सामुदाइयं भेरि महया २ सद्देणं तालेइ तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महसेणपामुक्खाओ छप्पण्णं बलवगसाहस्सीओ ण्हाया जाव विभूसिया जहा विभव-इड्डि-सक्कार-समुदएणं अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रहसीया संदमाणीगया अप्पेगइया पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति २ करयल जाव कण्हं वासुदेवं जएणं ॥२५७॥
SR No.600272
Book TitleGnata Dharmkathangasutram
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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