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चन्द्रप्रभस्वामि
चरित्रम्
॥२७८॥
केणावि कारणेसा, नागया पाणवल्लहा । ता गंतूण गिहे निद्द, करेमि जरियं रसे ॥ ६० ॥ चितिऊण ति सो पत्तो, गिहदारंमि जोअए । तो पल्लंकपसुत्ता सा, दिट्ठा तेण समं पिया ॥ ६१ ॥ कोहुवो तस्स, जलिओ अइमित्तयं । ताण मारणबुद्धीए, विगप्पे करिऊण सो ॥ ६२ ॥
ओ रायस्स पासम्म, विष्णवेद कयंजली | निम्गहेहि ममं नाह !, पच्छा वि भविद्दी जओ ॥ ६३ ॥ राया भणे को इत्थ, अवराहो कओ तए १ । अवराहं विणा जेण, न को विनिग्गहिज्जए ॥ ६४ ॥ कित्तिमेण स कंपेण, धुज्जंतो भासए जओ । सामि ! ते पुत्तिया सुत्ता, मम गेहमि चिट्ठए ॥ ६५ ॥ एगो य पुरसो अत्थि, तीए पासे पसुत्तओ । खित्ताओ आगएणेव, मया दिट्ठा निए गिहे ॥ ६६ ॥ अन्नो वि सामिपायाणं, निच्छएण कहिस्सह । तो मया कहियं पुव्वं, अओ सामी वियारउ ॥ ६७ ॥ सुणिऊण त्ति राया वि, कोहेण जलिओ खणा । आणवेइ तओ भिच्चे, जाह मारेह ते दुवे ॥ ६८ ॥ तो ते तेण पुरिसेण, सह तत्थ गया दुयं । वेढियं तं गिहं तेहिं, तओ भूवेण जग्गियं ॥ ६६ ॥ किमेयमिय उट्ठित्ता, राया मयणसुं दरो । पासए दारछिदेहिं, बहिट्ठिए भडे घणे ॥ १०० ॥ उहओ य सहस्संसू, सव्वं दिट्ठीइ दिस्सए । तओ य रायपुत्तीए, दिट्ठो मीणज्झय व्व सो ॥ १०१ ॥ मण पढमं नाओ, जह एस न सो हवे । दिट्ठीए अहुणा नाओ, ता को एस भवे धुवं १ ॥ १ ॥ १०२ ॥ एयाए रुवलच्छीए, सामनो को वि एस न । सुलक्खणेहिं एएहि, राया वा अहवा सुरो ॥
१०३ ॥
द्वितीयः
परिच्छेदः
मदन
पुन्ये सुन्दर कथा ।
॥२७८॥