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________________ चन्द्रप्रमस्वामि द्वितीयः परिच्छेदः चरित्रम् ॥२४॥ स्वाम्यङ्गलक्षणानि । तेलोक्कं रायदिप्पंतं, दट्टणं कारवाइया । उन्हाणा दाणि मे दिट्ठी, दिढे चंदे व्व ते मुहे ॥ १४६ ॥ अहुणा भारहे खित्ते, तइ भाणुम्मि उग्गऐ । कीलंति मिलिया चोज्ज, नाह ! सव्वे वि कोसिया ॥ १५० ॥ अज हत्था कयत्था मे, ण्हवणं जेहिं ते कयं । न हु बुद्धि विणा मेहो, कया वि सहलो हवे ॥१५१ ॥ मज्झिमो वि तए नाह !, जाओ संपयमुत्तमो। मच्चलोओ जहा रासिविसेसेण गहो सुहो ॥ १५२ ॥ ससिरीयं जगं दाणि, जायं तुमंमि आगए। न विणा कोत्थुहं लच्छी, विण्हुवच्छत्थले सिया॥१५३॥ इंदेहिंतो वि एत्ताहे, मच्चा उच्चत्तमागया। जं ते देसणनिस्सेणिं, रूढा सिझंति नो वयं ॥१५४॥ वायालावि सया जीहा, तुमंमि कयसंथवा । कयत्था जेण मेहंदु, सुत्तीए होइ मोत्तियं १५५॥ एवं थुणित्त तित्थेसं, पमोयमोइमाणसो । अप्पाणं पंचहा किच्चा, सोहम्मेसो पुरा जहा ।। १५६ ॥ ईसाणसामिणो अंका, गिण्हित्ता सामिणं तओ । लक्खणालंकियं गेहं, पत्तो जचो सरेहिं सो॥ १५७ ॥ संहरित पडिच्छंद, सामिणो मोत्तु अंत्तिए । हरइ निद्द देवीए, पोमिणीए जहा रवी ॥ १५ ॥ दुगूलजुगलं सीसे, रयणकुडलद्दुगं । नहें रवि व उल्लोचे, ठावेइ केलिगंडुयं ॥ १५६ ॥ न थनपाइणो जेण, अरिहंता तओ हरी । संकमेइ जिणंगुठे, नाणाहाररसामियं ॥१६॥ जिणस्स पिउणो गेहे, हिरण्णरयणाईयं । पूरणीयं तए इत्थ, जक्खेसं आइसेइ सो॥१६१॥ जिणमाइजिणंदाणं, विरूवं चिंतिही य जो। तस्सऽज्जयमंजरि व्व, सत्तहा फुट्टिही सिरं ॥ १६२॥ ॥२४॥
SR No.600270
Book TitleChandraprabhswamicharitam
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1986
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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