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किंचिदधिकाणि । परमत्थि न चित्तसभा जहन्नराईण तह तुम्भं ॥४॥ विमलपहाकरनामा चित्तकरा सेणिणायगा दोन्नि । सद्दाविया निवइणा गरुयममरिसं वहंतेण ।।५।। भणिया एयसभाए जह चित्तं लहू पसिज्झए कुणह । तह तुब्भे सव्वायरसारा जणचित्तचोरंति ॥६॥ एवंति मनिए गरुयरायसम्माणभायणीभूया। तकालोबट्ठियसयलचित्तपाउग्गसुइंदव्वा ॥७॥ विहिया दुहा सभा सा मज्झम्मि य जवणिया घणा ठविया। मा कोइ अइसयं पेच्छिऊण कस्सावि चोरेजा ॥८॥ आढत्ता चित्तेउ सपरियणा तं सहं कयपइन्ना । विमलेण छट्ठमासे विचित्तचित्ता इमा विहिया ॥९॥ तो रन्ना कोउगपरिगएण जुगवं दुवेवि परिपुट्ठा । हहो ! तुम्भं चित्तं केत्तियमेत्तं विणिप्फन्नं ? ।।१०।। विन्नत्ता विमलेणं जह चित्तं मज्झ अविकलं जायं । णिय दिट्ठिपयाणेणाणुग्गहमेत्तो खणं कुणह ।।११॥ बीएण पुण पयंपियमेगावि मए न निम्मिया रेहा । चित्तपरिकम्मजोगा भूमिच्चिय केवला रइया ।।१२।। दिट्ठो सहाविभागो रन्ना विमलेण चित्तिओ तोसो। तो तस्स समुप्पन्नो कयाय पूया समुचियत्ति ।।१३॥ विक्खिविऊणं जवणियमियरसहाभागमिह पलोइंति । जा नरनाहो चित्तियभित्तिविभागस्स संकमओ ॥१४॥ तत्तो रम्मसरूवा सा भित्ती उझत्ति निवइणा दिट्ठा । चित्तयरवयणविहडणमभिसंकतो लहु विलक्खो ॥१५॥ जाओ निवो पयंपइ अम्हे वियारिया किमेवं ते? । ण हु देव ! संकमातो चित्तस्स इमेरिसं जायं ॥१६॥ संकासंकुलियमणोवि तं जवणियमवणियं जहा कुणइ । ता पेच्छइ भिति चिय निवई ससिनिम्मलालोयं ॥१७॥ विप्फुरियविम्हयमुहो पुच्छइ राया तए न कि विहियं । चित्तं एत्तियकालो जं लग्गो भूमिमेत्तम्मि? ॥१८॥ देव ! न भूमिविसुद्धि विणेह चित्तं कयंपि रमणिज्ज । ओभावइ वनगा जं थिरत्तसुद्धीओ न
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