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________________ हुधीर ! णरयाणले घोरे ॥४६।। भुजंतो परदारं दारं पाउणइ नरयगुत्तीए । नय संपावइ पारं पारंपरियाण दुक्खाणं ॥४७।। कस्स न सुहय ! सुहायइ संगो तुम्हारिसेहिं सुयणेहिं । किंतु न सका साढुं नरए वजग्गिजालाओ ॥४८॥ भोगसुहं मणुयाणं संजायइ केइ परिमिए दिवसे । नरए दारुणदुक्खं सागरपल्लोवमाणेहिं ॥४९।। अन्नं च ॥ किं पेच्छसि ॥६४३॥ मम अहियं नरवर ! अंतेउराओ निययाओ। जं कूणसि असग्गाहं बालोव्व अनायपरमत्थो ॥५०॥ अवि य ।। मग्गंति विम्हिया जह एगं चंदं जले जले बाला। तह दुलहं भोगसुहं मूढा अन्नन्ननारीसु ॥५१॥ इय निसुणंतो सहसा राया संवेगसारमुल्लवइ । साहु सुभणियं सुंदरि! नायं तत्तं मएदाणि ॥५२॥ मोहंधस्स तए मम विवेगचक्खू सुनिम्मलं दिन्नं । नरयागडे पडतो झडत्ति धरिओ अहं तुमए ॥५३॥ भण किं करेमि इण्हि तुज्झ पियं सुयणु ! मंदभग्गो हं। तीए भणियं गिण्हसु विणिवत्ति परकलत्तस्स ॥५४॥ तो हरिसपुलइयंगो चक्कोइव दिट्ठउग्गयपयंगो। विरओ परदाराओ राया कयधम्मगुणराओ ॥५५॥ भी साहु साहु सुपुरिस ! मुणियं तत्तं उरीकयं सत्तं । नय मयलिओ सवंसा इय सुंदरीए PS कयपसंसो ॥५६।। खामिय पुणो पुणो तं पूयइ सक्कारियं विसज्जेइ । मंतिस्स य सपसाओ राया पुब्विव संजाओ।॥५७॥ एवं अकरणनियमो अकलंको पालिओ इमीएवि । जिणसासणसरसिरुहं सेसंव सिरे धरतीए ॥५८॥ अह तामलित्तिउत्तमचित्तंगयणेगमंगओ धम्मो । वाणिज्जकए सागेयमागओ मुणियजिणधम्मो ॥१॥ तेण य कयाइ विवणिट्ठिएण किर रिद्धिसुंदरी दिदा । सहसा सहीहिं सहिया वच्चंती रायमग्गेण ॥२॥ परिचितियं च ताहे अहो असारेवि एत्थ संसारे । एसा सारंगच्छी सारायंतिव्व पडिहाइ ॥३॥ जइ कीरइ गिहवासो आसाबंधो य विसयसुहलेसे । ता
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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