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________________ E४४ पदेशपदः सह इमीए जुत्तो इहरा उ विडंबणा चेव ॥४॥ इयचितिरस्स अहियं वच्चइ तहियं पुणो पुणो तस्स । वारेंतस्सवि बला हिााग्रथः दिट्री गिट्रिव्व जवसम्मि ॥५॥ एत्थंतरम्मि देवा कुऊहलालोयवाउलमणाए। तीएवि लोयणाई सहसच्चिय तम्मि पत्ताईसाराचारतम् ॥६॥ तं पेच्छिउकामाए तत्तो उद्दिस्स सहियणं भणियं । एसो हला! नवल्लो दीसइ वाणुंजुओ कोवि ।।७।। मुणियमणोभावाए भणियं एगाए ईसि हसिऊण । सच्चं एस नवल्लो दीसइ सही ! तिलमओ जेण ।।८।। अन्नाए संलत्तं सहि ! एसो निउणकरिसगो कोइ । जो उप्पायइ खिलवल्लरेसु सहसा तिले विउले ।।९।। अन्नावि आह मुद्ध ! णणु एसो पस्स ओहरो तेणो। जेण सहिचित्तवित्तं हरियं सव्वासिं पच्चक्खं ॥१०॥ ता उवणिजउ मुद्धे ! एस महारायगोयरं तुरियं । जेणम्ह सामिणीए अप्पइ सयलं हिययरित्थं ॥११॥ अन्ना भणइ सयं चिय गहिओ एसो हलाणुराएण । नजइ जीविK यकजे महइ अहो ! सामिणि सरणं ॥१२।। नाया हंत विलक्खा अह पभणइ रिद्धिसुंदरी ताओ । संचलह हला! हुलियं अलं असंबद्धवाएण ॥१३॥ एस्थंतरम्मि सहसा छीयं धम्मेण णियणिमित्ताओ। भणियं च तयवसाणे नमो नमो जिणवरिंदाणं ॥१४।। तं सुणिय समुल्लसियं अहिययरं रिद्धिसुंदरीएवि । भणियं च चिरं जीवउ जिणिदभत्तो जणो एस ।।१५।। आयण्णिय नीसेसं वित्तंतमिणं सुमित्तवित्तेसो। पुच्छइ धम्मसरूवं तयभिन्ने भव्वजीव्वोव्व ।।१६।। घेत्तूण परियणाओ चेइयजइपूयणेकरसियं तं । तस्स सयमेव गंतुं वियरइ धूयं सुहमुहुत्ते ॥१७॥ मग्गंताणवि कुलरूवविहवकोसल्लकित्तिकलियाणं । जिणमयबज्झाण बहूण जा न दिन्ना पुरा पिउणा ॥१८॥ संपइ अमग्गिया सा लद्धा धम्मेण जिणमयरएण । अहवा अमग्गियं चिय लहंति सोक्खं जिणमयत्था ॥१९॥ वारिजयम्मि वित्ते संपुग्नमणोरहो सह
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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