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पदेशपदः सह इमीए जुत्तो इहरा उ विडंबणा चेव ॥४॥ इयचितिरस्स अहियं वच्चइ तहियं पुणो पुणो तस्स । वारेंतस्सवि बला हिााग्रथः दिट्री गिट्रिव्व जवसम्मि ॥५॥ एत्थंतरम्मि देवा कुऊहलालोयवाउलमणाए। तीएवि लोयणाई सहसच्चिय तम्मि पत्ताईसाराचारतम्
॥६॥ तं पेच्छिउकामाए तत्तो उद्दिस्स सहियणं भणियं । एसो हला! नवल्लो दीसइ वाणुंजुओ कोवि ।।७।। मुणियमणोभावाए भणियं एगाए ईसि हसिऊण । सच्चं एस नवल्लो दीसइ सही ! तिलमओ जेण ।।८।। अन्नाए संलत्तं सहि ! एसो निउणकरिसगो कोइ । जो उप्पायइ खिलवल्लरेसु सहसा तिले विउले ।।९।। अन्नावि आह मुद्ध ! णणु एसो पस्स ओहरो तेणो। जेण सहिचित्तवित्तं हरियं सव्वासिं पच्चक्खं ॥१०॥ ता उवणिजउ मुद्धे ! एस महारायगोयरं तुरियं ।
जेणम्ह सामिणीए अप्पइ सयलं हिययरित्थं ॥११॥ अन्ना भणइ सयं चिय गहिओ एसो हलाणुराएण । नजइ जीविK यकजे महइ अहो ! सामिणि सरणं ॥१२।। नाया हंत विलक्खा अह पभणइ रिद्धिसुंदरी ताओ । संचलह हला! हुलियं
अलं असंबद्धवाएण ॥१३॥ एस्थंतरम्मि सहसा छीयं धम्मेण णियणिमित्ताओ। भणियं च तयवसाणे नमो नमो जिणवरिंदाणं ॥१४।। तं सुणिय समुल्लसियं अहिययरं रिद्धिसुंदरीएवि । भणियं च चिरं जीवउ जिणिदभत्तो जणो एस ।।१५।। आयण्णिय नीसेसं वित्तंतमिणं सुमित्तवित्तेसो। पुच्छइ धम्मसरूवं तयभिन्ने भव्वजीव्वोव्व ।।१६।। घेत्तूण परियणाओ चेइयजइपूयणेकरसियं तं । तस्स सयमेव गंतुं वियरइ धूयं सुहमुहुत्ते ॥१७॥ मग्गंताणवि कुलरूवविहवकोसल्लकित्तिकलियाणं । जिणमयबज्झाण बहूण जा न दिन्ना पुरा पिउणा ॥१८॥ संपइ अमग्गिया सा लद्धा धम्मेण जिणमयरएण । अहवा अमग्गियं चिय लहंति सोक्खं जिणमयत्था ॥१९॥ वारिजयम्मि वित्ते संपुग्नमणोरहो सह