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________________ उपदेशपद: महाग्रंथः ।।६०६ ।। ५ विउलभागभायणमेत्थवि जाया परूढरजभरा। अह दावई कयावि हु पगब्भगब्भा समुब्भूया ।। ३२३ ।। मासाण नवण्हमइक्कमम्मि दारयमुदाररूवधरं । सुकुमालपाणिपायं निरोगतणुं पसूयत्ति ॥३२४|| निव्वत्तवार साहस्स तस्स नाम इमेरि विहियं । जं पंचपंडवसुओ होइ इमे पंडुसेणोत्ति ।। ३२५ || कालम्मि कलाउ सुनिम्मलाउ बावर्त्तारिपि कलियाओ । जाओ भोगस मत्थे। सेा जुवरजम्मि अहिसितो ॥ ३२६ ॥ अह तस्थ कयाइवि जलहिगन्भगंभीर माणसा थेरा । भव्वकमलाण भाणू समासढा असढपरिणामा || ३२७|| नयराओ जणो तह पंच पंडवा तेसि वंदणनिमित्तं । नीहरिया परिकहिओ धम्मो पंचवि पबुद्धा ते ।। ३२८ ।। भालयलमिलियकरकमलजुगलया वज्जरंति पुच्छामो । देवि दुवयंगरुहं पुत्तं रज्जम्मि ढावेमो ।। ३२९|| जा ताव तुम्हपयपंकयस्स मूले वयं पवज्जामा । पुत्तारोवियरजा समगं देवीए निक्खता ।।३३० ॥ जाया समणा खंतिक्खमा य गुणरायरायहाणि समा । अजाए सुव्वयाए सिस्सिणिया दावई जाया ।।३३१।। मोक्खंगाई कमेण सव्वाई अहिजियाई अंगाई । छट्ठट्ठमाइकट्ठे तवं अणुट्टेउमारद्धा ||३३२।। ते रा भगवंता पुरंतरं विहरिया अह कयाई । भगवं अरिट्ठनेमी कुणइ विहारं सुरट्ठाए ।। ३३३॥ परिभावंति य पंचवि जइ नेमी कचि बंदिओ हाइ । कयलक्खणा भवामो जम्मं च इमं सुलद्धति ।। ३३४ ॥ जाव सुरट्ठाभिमुहं चलिया थेरे अणन्नचित्ता णं । पत्ताय हत्यिकप्पं नयरं सहसंबनामम्मि ।। ३३५ || उज्जाणम्मि ठियाणं मासक्खवणस्स पारणगदिवसे । तइयाए पोरिसीए नगरस्संतो अहंताणं ॥ ३३६ ॥ लहुयाण चउन्हें पंडवाण सवणेसु कहवि संपत्ता । वत्ता जहज राओ उज्जते निव्बुओ नेमी ||३३७|| तक्खणमेव नियत्ता जेणेव जुहिट्टिलो मुणी तत्तो । साहिति जहावत्तं भत्तं पाणं च नागश्रिअंतर्गत धर्मरुचि द्रौपदीचरित्र समाप्ति: ।।६०६।।
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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