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TA माणसम्मि एवं विचितेइ ॥८७।। एयं मोत्तूणं सागरस्स भाए अंगजायस्स । मम पुत्तस्स ण णूणं अण्णा भजा समु
चियत्ति ॥८८।। पुट्ठो समीववत्ती जणो जहा कस्स एस वरधूया। महिलाणं सयलाणं जा देहसिरिं समुप्फुसइ ॥८९।। । कहियं सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स तो गिहं गंतुं । हाओ कयसिंगारो नियपरियणपरिवुडो संतो ॥९०॥ जेणेव गिहं|
सागरदत्तस्स समुजुओ तओ गंतुं । दटुं गिहमिजंतं तं सो सहसा समुद्रुइ ।।९१।। पुच्छइ सुहासणत्थं आगमणपओ॥५९१॥
यणं स तो भणइ । सुकुमालियाभिहाणा जा तुह धूया वरेउं तं ॥९२।। नियनंदणस्स सागरनामस्स कए समाणरूवस्स। अम्हे समागया इह समलावण्णाइगुणनिहिणो ॥९३।। ता जइ जुत्तं पत्तं च भाइ ता किजउ इमं एवं । पत्थावविहडियाणं कजाण पुणो गई नस्थि ।।९४।। भणिए जिणदत्तणं सागरदत्तो तओ इमं भणइ । अम्हाण गिहंगणमागयाण होजेह किमदेयं ।।९५॥ परमेक्का मे धूया उंबरपुप्फाउ दुल्लहा एसा। ण खणंपि तीए विरहं सहामि मणणयणदइयाए
॥९६।। ता जइ तुह सागरओ मम गिहजामाउओ सुओ होइ । तो धूयं सुकुमालियमहं पइच्छामि नो इहरा ॥९७॥ | गेहागएण भणिओ जणगेण स सागरो जहा वच्छ ! । जइ घरजामाया हासि लहसि सुकुमालियं धूयं ॥९८॥ तीए दढाणुराओ सव्वं तं सव्वहा पवजेइ । तो जिणदत्तो सव्वायरेण परमूसवं कुणइ ॥९९।। सिबियाए पुरिससहसोचियाए आरुहिय सागरो ताहे । सागरदत्तस्स गिहं हरिसुल्लसिरो समणुपत्तो ॥१०॥ तेणावि गोरवाओ महाविभूईए विहियसकारो। पडिवन्नो वीवाहं च कारिओ दारियाए समं ॥१०१।। जम्मि समयम्मि तीसे करफासो तस्स ईसि संजाओ। तप्पमिदं सिरसूलं सदाहजरमस्स उब्भूयं ॥१०२।। जह दारुणेण फणिणा अहवा जह विच्छुएण डक्कस्स । जह मुम्मु
॥५९१।।