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________________ उपदेशपदः -- महाग्रंथः ।।५९२ ।। ५ राभित्तिस्स तह दुक्खं तक्खणं जायं ॥। १०३ ।। लज्जाविलंघिओ तक्खणम्मि तुहिक्कओ ठिओ कहवि । पत्तम्मि सय णकाले सेजातलसंठियस्सेसा || १०४ || पक्खुहियरागजलही सव्वंगपसाहिया सणियसणियं । पासम्मि नुवन्ना अच्छरव्व सग्गाओ ओइण्णा ।। १०५ ।। अह पुणरवि तीए अंगफासमुवलद्धभागयविसाओ । चितेइ को खणो मज्झ होज एईए विरहकरो ॥ १०६ ॥ तत्तो सुहपासुत्तं तं मोत्तुं उट्ठऊण सेजाओ । मरणाउ विमुक्को वायसोव्व सो ताउ गेहाओ ।। १०७ ।। दूरं पलाइओ सावि तक्खणं विहियनिद्दपामोक्खा । सागरमपासमाणी पव्वइया सव्वओ नियइ ।। १०८ ।। वासघरस्स दुवारं विहालियं पासई मलक्खमणा । करयलपल्हत्थमुही विच्छायतणू विचितेइ ॥ १०९ ॥ न मए कओ अविणओ ण यावि एण बंधवजणेण । ता कत्तो मम दोहग्गदोसओ दूरगो जाओ ।। ११० ।। एवं झियायमाणा रुयमाणा विस्सरं विलवाणा । मुम्मुरगयव्व कहकहवि रयणिसेसं परिगमेइ ।। १११ ।। रयणीए पभायाए चेडिं सद्दाविउं भणइ जणणी । गच्छ वहूवरमुहधोवणियं खिप्पं उवणमेहि ।। ११२ ।। सोमालियासमीवे वासघरे सावि गच्छई जाव । पेच्छइ विलक्खदिट्ठि मम्मि तं किंचि चिति ।।११३ ।। पुट्ठा कीस झियायसि तुमेवमिहि भनाइ सा भद्द ! । सो सागरओ सुत्तं मं मोत्तुं कत्थइ गओति ।। ११४ ।। सा उवलद्धवइयरा जणयाणं साहए जहावृत्तं । तो कोवमिसमिसंता तज्जणओ सागरसुवरि ।। ११५ ।। गच्छइ जिणदत्तगिहं भणाइ हंभा ! किमेवमुचियंति । पुत्तस्स, जो अदोसं सहसा सोमालियं मुयइ ।।११६ ॥ नेयं कुलाणुरूवं न पत्तकालं न चेव जुत्तंपि । सुकुलीणाण जणाणं जं विहियं सागरेणञ्ज ।। ११७ ॥ एवं बहूवलंभे अइनिष्पिहमाणसो चिरं दाउं । जा चिट्ठइ एगंते ता सागरमाह इय जणगो ।।११८।। दुट्ठ तए पुत्त ! कयं घर नागश्रीगभितधर्मरुचिचरित्रम् ।। ५९२।।
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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