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________________ उपदेशपदः सा जाया ॥३६।। पुट्ठा य सेट्ठिणा दढमक्खायं जह इमो मणोभावो । संपइ संपन्नोऽपूरणेण तस्सेरिसाऽवत्था ॥३७॥ श्रीसुदर्शन महाग्रंथः महया विहववएणं दूरं परिमुक्त किविणचरिएणं । सेो सिट्टिणा पहि₹ण सुठ्ठ संपाडिओ सव्वो ॥३८॥ पइरिक्काए श्रेष्ठिनिद र्शनम्सुहाए सेजाए एत्थ भोयणेहिं च। सा गब्भं वहइ महासमाहिसारं तओ नवसु ।।३९।। मासेसु समहिएK गएसुस | सुहजोगलग्गसमयम्मि । पुन्नाए तिहीए सुकिलम्मि पक्खे वरे रिक्खे ॥४०॥ उच्चट्ठाणगएसु गहेसु दिसिमंडलेसु विमलेसु । ॥५१२॥ झति पसूया रविमंडलं व पुवा सुयं सा य ।।४१।। विहियं वद्धावणयं तूररवापूरपुन्नदिसिचक्कं । सयलपुरलोयलोयण मणहरणं दिनबहुमाणं ॥४२॥ पत्ते दुवालसदिणे विहिएसुं सूइ समय किच्चेसु । संमाणियबंधुजणो पियरजणो नाममिय कुणइ ।।४३।। जं सणसुद्धिपरा जाया जणणी इमम्मि गब्भगए । तम्हा सुदंसणो एस होउ पुत्तो पवित्तगुणो ॥४४।। नीरोगो निस्सोगा विगय विओगो पवड्डिउं लग्गा । सेा बालो बहुलेयरपक्खे ससिमंडलकलब्ब ॥४५॥ समए संगहियाओ | कलाओ सव्वाओ जायतारुन्नो । संपत्तो स मणुत्रो गुणन्नजणजणियसंतोसा ॥४६।। वसणं दाणम्मि परं पणओ य मुणीसु सुगरुसु विणओ य। सीलम्मि रई न मई सुविणेवि अकञ्जकरणम्मि ।।४७।। परिणाविओ य पिउणा सुकुलुग्गयमग्गलं गुणगणेण । सयलमहिलाण मज्झे मणोरम नाम वरकन्नं ॥४८॥ ठाणे २ परिगिजमाणगुणगउरवो गणिजणेणं । | गमयइ दिणाई मइविहवविजियगिव्वाणबहुमंती ॥४९॥ इओ य दहिवाहणस्स रन्नो पुरोहिओ आसि कविलनामोत्ति । कविला नामेण पिया अहन्नया तीए सो पुरओ ॥५०।। सेट्ठिसुदंसणचरियं कयबहुमाणो पसंसिउं लग्गो । जह एत्थ णत्थि संपइ गुणेहिं एयस्स कवि तुल्लो ॥५१॥
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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